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१०८ : श्रमण, वर्ष ५८, अंक २-३/अप्रैल-सितम्बर २००७ ही व्याप्ति है। यथा-अग्नि के होने पर ही धूम होता है, उसके अभाव में धूम निश्चित रूप से होता ही नहीं है।' माणिक्यनन्दी के अनुसार ही सहभाव नियम एवं क्रमभाव नियम अविनाभाव है। सहचारी और व्याप्य-व्यापक भूत पदार्थों में सहभाव-नियम तथा पूर्वचर, उत्तरचर और कार्यकारणभूत पदार्थों में क्रमभाव नियम पाया जाता है।३४ इसकी व्याख्या करते हुए अनन्तवीर्य ने लिखा है कि सहचारी रूप, रस आदि में तथा वृक्षत्व, शिंशपात्व आदि व्याप्य-व्यापकभाव वाले पदार्थों में सहभाव नियम पाया जाता है।५ जैसे- संतरा रूप वाला रस होने से। यहाँ जहाँ-जहाँ रस होता है वहाँवहाँ रूप भी होता है। ऐसी व्याप्ति बनाई जा सकती है, क्योंकि हेतु 'रस' साध्य 'रूप' के अभाव में कहीं भी नहीं पाया जाता। इसके विपरीत यदि संतरा रस वाला है, रूप होने से इस अनुमान का उत्थापन किया जाय तो अनुमान यथार्थ नहीं होगा, क्योंकि हेतु रूप साध्य रस के अभाव वाले पदार्थ तेज अग्नि रूप में भी पाये जाते हैं। अत: जहाँ-जहाँ रस रहता है वहाँ-वहाँ रूप भी रहता है। इस प्रकार सहचारियों का ज्ञापन करना ही सहभाव नियम हैं। 'प्रमाणनयतत्त्वालोक' में वादिदेवसूरि ने 'साध्य एवं साधन के त्रैकालिक सम्बन्ध को व्याप्ति कहा है।'३६ अर्थात् दो वस्तुओं के बीच का वह सम्बन्ध जो भूत, वर्तमान एवं भविष्य में सदैव विद्यमान रहे और उसका बाध न हो। 'प्रमाणनयतत्त्वालोक' की अंग्रेजी व्याख्या में डॉ० हरिसत्य भट्टाचार्य का कहना है कि The Subject-matter or the content of Induction is the relationship which subsists between two things or phenomena and which relationship continues to be true in all the three times, i.e., past, present and future. इस प्रकार व्याप्ति के लिए त्रैकालिकता का होना
अनिवार्य है। अनिवार्यता की त्रैकालिकता का बोध हुए बिना अविनाभाव का नियम निर्धारित नहीं किया जा सकता। नैयायिक मानते हैं कि भूयो-दर्शन से अविनाभाव का बोध होता है। बार-बार दो वस्तुओं का साहचर्य देखते हैं, तब उस साहचर्य के आधार पर नियम का निर्धारण कर लिया जाता है। परन्तु नियम का आधार सिर्फ साहचर्य ही नहीं अपितु व्यभिचार भी होना चाहिए। अत: व्याप्ति के लिए दो विषयों का ज्ञान आवश्यक है- साहचर्य का ज्ञान तथा व्यभिचार ज्ञान का अभाव।३८ अत: मात्र भूयो दर्शन से भूत, वर्तमान एवं भविष्य के पदार्थों का व्याप्ति ज्ञान सम्भव नहीं है।
आचार्य हेमचन्द्र व्याप्ति विवेचना में बौद्धाचार्य धर्मकीर्ति का अनुसरण करते हुए कहते हैं कि 'व्याप्य के होने पर व्यापक का होना तथा व्यापक के होने पर व्याप्य का होना व्याप्ति है।३९ अर्थात् हेतु के होने पर साध्य का निश्चित रूप से होना तथा साध्य के होने पर ही हेतु का होना व्याप्ति है। ‘हेतुबिन्दुविवरण' में अर्चट ने व्याप्ति को संयोग की तरह एकरूप सम्बन्ध नहीं अपितु व्यापक धर्म और व्याप्यधर्म रूप