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अध्यात्म के क्षेत्र में तत्त्व चिन्तन के माध्यम से जीव का ऊर्ध्वारोहण उसके विकास की कहानी है और जीव के विकास का यह क्रम स्वाभाविक एवं वैज्ञानिक है। अत: इसे हम भी अपने जीवन में उतारकर आत्मकल्याण करें, यही मङ्गलभावना है।
सन्दर्भ :
१.
२.
३.
४.
५.
६.
७.
तर्कसंग्रह, व्याख्याकार-- वाराणसी, पृ० ३-४.
तर्कभाष्य, व्याख्याकार, आचार्य विश्वेश्वर, चौखम्बा संस्कृत सिरीज, पृ० ८. चार्वाकदर्शनाचार्य, आनन्द झा, उ. प्र. हि. सं. प्रयाग, भाष्य प्रकरण, पृ० ३०१. ब्रह्मैव केवलं वस्तु, वेदान्तसार.
जीवाजीवास्रवबन्धसंवर निर्जरामोक्षास्तत्त्वम् । तत्वार्थसूत्र १/४.
डॉ० सुदर्शन लाल जैन, सिद्ध सरस्वती प्रकाशन,
पञ्चास्तिकाय, द्रव्याधिकार, गा० ४ - ६.
तत्वार्थसूत्र, सिद्धान्ताचार्य पं० फूलचन्द्र शास्त्री, वही, ५/१ की व्याख्या, पृ० १३९.
वही,
८.
५/९.
९- १०. वही, ५ / १ की व्याख्या, पृ० १४०.
दोहा ११.
११. छहढाला, पञ्चम ढाल,
१२. छहढाला, चतुर्थ ढाल, दोहा ३. १३. वही, ४/७.
१४. तत्वार्थसूत्र, ९/७.
१५-१६. बारह भावना, एक अनुशीलन, प्रका०पृ० १९, छहढाला, पाँचवी ढाल, छन्द १.
१७. सामयिकपाठ, प्रका०- सम्यग्ज्ञान प्रचारक मण्डल, जयपुर, पृ० १३४. १८. योगसूत्रम्, प्रका०- चौखम्बा संस्कृत सीरिज, वाराणसी, पृ० ३९. १९. विसुद्धिमग्ग, परिच्छेद ९, पृ० २००-२२, बौद्धदर्शन, आचार्य बलदेव उपाध्याय, सूत्र ३३, पृ० ४०६.
२०-२१. समयसार, आत्मख्याति टीका, प्रका०-
वर्णी जैनसाहित्य मन्दिर,
मुजफ्फरनगर गा० २१० की टीका, पृ० ३७९. २२. सर्वार्थसिद्धि, सम्पा०- पं० फूलचन्द्र सिद्धान्तशास्त्री, भारतीय ज्ञानपीठ,
काशी, अध्याय ४, सूत्र २६, पृ० २५७.
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