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________________ १६ अध्यात्म के क्षेत्र में तत्त्व चिन्तन के माध्यम से जीव का ऊर्ध्वारोहण उसके विकास की कहानी है और जीव के विकास का यह क्रम स्वाभाविक एवं वैज्ञानिक है। अत: इसे हम भी अपने जीवन में उतारकर आत्मकल्याण करें, यही मङ्गलभावना है। सन्दर्भ : १. २. ३. ४. ५. ६. ७. तर्कसंग्रह, व्याख्याकार-- वाराणसी, पृ० ३-४. तर्कभाष्य, व्याख्याकार, आचार्य विश्वेश्वर, चौखम्बा संस्कृत सिरीज, पृ० ८. चार्वाकदर्शनाचार्य, आनन्द झा, उ. प्र. हि. सं. प्रयाग, भाष्य प्रकरण, पृ० ३०१. ब्रह्मैव केवलं वस्तु, वेदान्तसार. जीवाजीवास्रवबन्धसंवर निर्जरामोक्षास्तत्त्वम् । तत्वार्थसूत्र १/४. डॉ० सुदर्शन लाल जैन, सिद्ध सरस्वती प्रकाशन, पञ्चास्तिकाय, द्रव्याधिकार, गा० ४ - ६. तत्वार्थसूत्र, सिद्धान्ताचार्य पं० फूलचन्द्र शास्त्री, वही, ५/१ की व्याख्या, पृ० १३९. वही, ८. ५/९. ९- १०. वही, ५ / १ की व्याख्या, पृ० १४०. दोहा ११. ११. छहढाला, पञ्चम ढाल, १२. छहढाला, चतुर्थ ढाल, दोहा ३. १३. वही, ४/७. १४. तत्वार्थसूत्र, ९/७. १५-१६. बारह भावना, एक अनुशीलन, प्रका०पृ० १९, छहढाला, पाँचवी ढाल, छन्द १. १७. सामयिकपाठ, प्रका०- सम्यग्ज्ञान प्रचारक मण्डल, जयपुर, पृ० १३४. १८. योगसूत्रम्, प्रका०- चौखम्बा संस्कृत सीरिज, वाराणसी, पृ० ३९. १९. विसुद्धिमग्ग, परिच्छेद ९, पृ० २००-२२, बौद्धदर्शन, आचार्य बलदेव उपाध्याय, सूत्र ३३, पृ० ४०६. २०-२१. समयसार, आत्मख्याति टीका, प्रका०- वर्णी जैनसाहित्य मन्दिर, मुजफ्फरनगर गा० २१० की टीका, पृ० ३७९. २२. सर्वार्थसिद्धि, सम्पा०- पं० फूलचन्द्र सिद्धान्तशास्त्री, भारतीय ज्ञानपीठ, काशी, अध्याय ४, सूत्र २६, पृ० २५७. Jain Education International पं० टोडरमल स्मारक ट्रस्ट, For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.525043
Book TitleSramana 2001 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShivprasad
PublisherParshvanath Vidhyashram Varanasi
Publication Year2001
Total Pages176
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Sramana, & India
File Size8 MB
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