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'सामञ्जफलसुत्त' में उल्लिखित छ: तीर्थकों के मतों के अपने-अपने संगठन अवश्य रहे होंगे। उदाहरणार्थ निगण्ठनातपुत्त (महावीर स्वामी) का संगठन तो ज्ञात ही है जो निग्रन्थ धर्म के नाम से ख्यात था और स्वयं निगण्ठ नातपुत्त उसके चौबीसवें
और अन्तिम तीर्थङ्कर थे। पूरणकस्सप और अजितकेसकम्बल प्रसिद्ध नास्तिक और भौतिकवादी दार्शनिक चार्वाक के अनुयायी प्रतीत होते हैं। अचेलकस्सप नामक नग्नपरिव्राजक, जो महासीहनादसुत्त में वर्णित है,सम्भवत: एक जैन मुनि है।
इस प्रकार दीघनिकाय में व्यक्त सामाजिक परिवेश जिसमें समाज, धर्म दर्शन सम्मिलित है, का अवलोकन किया गया। जैसा कि ऊपर कहा गया है कि महात्मा बुद्ध
और उनकी वाणी, जो पालि साहित्य में निहित है, से ही भारत के निश्चयात्मक इतिहास पर प्रकाश पड़ता है। दीघनिकाय के अतिरिक्त सुत्तपिटक के अन्य निकायों में भी इसी प्रकार के तथ्य सामने आ सकते हैं। जरूरत उनके सूक्ष्मावलोकन की है। १. पालि साहित्य का इतिहास, पृ० १४०-४१. २. दीघनिकाय, पृ० ८०.
वही, पृ० ११७. ४. वही, पृ० ४१.
वही, पृ० ८.
वही, पृ० ८. ७. वही, पृ० ४४. ८. वही, पृ० १३. ९. वही, पृ० १७. १०. वही, पृ० २१. ११. वही, पृ० १०-१२.
सन्दर्भ : १. भरतसिंह उपाध्याय, पालि साहित्य का इतिहास, हिन्दी साहित्य सम्मेलन,
प्रयाग, द्वितीय संस्करण, प्रयाग १९६३. दीघनिकाय, भिक्खु जगदीसकस्सप, बिहार राजकीय पालिप्रकाशन मण्डल, पटना १९५८.
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