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१५८ करने का भी वचन दिया। इन सभी कार्यों के कार्यान्वयन के लिये एक ५ सदस्यीय समिति भी गठित की गयी है जिसमें संस्थान के निदेशक महोदय को भी सम्मिलित किया गया है।
आगामी शैक्षणिक सत्र की परियोजना पार्श्वनाथ विद्यापीठ का आगामी शैक्षणिक सत्र जुलाई से प्रारम्भ हो रहा है। तब तक पूर्वाञ्चल विश्वविद्यालय, जौनपुर से सम्बद्धता मिलने की भी पूरी आशा है। इस सत्र से हम संस्थान में निम्नलिखित पाठ्यक्रम प्रारम्भ करने की योजना बना रहे हैं१. प्राकृत और जैनधर्म में त्रैमासिक डिप्लोमा कोर्स २. योग और प्रेक्षाध्यान में त्रैमासिक डिप्लोमा कोर्स ३. प्राकृत पाण्डुलिपि विज्ञान कार्यशाला
___ हमारे इन शैक्षणिक कार्यक्रमों में जो भी सुधी महानुभाव अभिरुचि रखते हों वे कृपया संस्थान से अविलम्ब सम्पर्क करें। उन्हें आवास आदि की समुचित व्यवस्था देने का पूरा प्रयत्न किया जायेगा।
इनके अलावा प्राकृत शिलालेख, अनेकान्तवाद, कर्मवाद, जैन आयुर्वेद आदि जैसे महत्त्वपूर्ण विषयों पर संगोष्ठियाँ, व्याख्यानमालायें और कार्यशालायें आयोजित करने की भी योजना है।
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संस्थान के नये प्रकाशन वर्ष २००० में संस्थान द्वारा निम्नलिखित ग्रन्थ प्रकाशित किये गये१. अष्टकप्रकरण, अनुवादक- डॉ० अशोककुमार सिंह; सम्पा०
प्रो० सागरमल जैन २. श्रमण, जनवरी-जून २०००
श्रमण, जनवरी-जून २००० (क्रोडपत्र) ४. श्रमण, जुलाई-सितम्बर २००० (आचार्य लब्धिसूरि स्मृतिअंक) ५. श्रमण, अक्टूबर-दिसम्बर २००० (प्रो० सागरमल जैन लेख विशेषांक) ६. सागर जैन विद्या भारती, भाग-४
तपागच्छ का इतिहास, भाग १, खण्ड १, लेखक - डॉ० शिवप्रसाद निम्नलिखित ग्रन्थ मुद्रित हो रहे हैं और अतिशीघ्र विक्रयार्थ उपलब्ध हो सकेगें। १. अलंकारदर्पण, अनु०- श्री भंवरलाल जी नाहटा २. अचलगच्छ का इतिहास, लेखक --- डॉ० शिवप्रसाद
३. जैनधर्म में समाधिमरण की अवधारणा, लेखक – डॉ० रज्जनकुमार Jain Education International For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org
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तपास