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साहित्य सत्कार
जैन दर्शन में श्रद्धा (सम्यग्दर्शन), मतिज्ञान और केवलज्ञान की विभावनालेखक- प्रो० नगीन जी० शाह; प्रकाशक- डॉ० जागृति दिलीप सेठ, बी-१४, देवदर्शन फ्लैट, नेहरूनगर, चार रास्ता, अंबावाडी, अहमदाबाद ३८००१५; प्रथम संस्करण २००० ई०; आकार- डिमाई; पृष्ठ ८+ ७०; मूल्य- ५०/- रुपये ।
डॉ० नगीन जी० शाह जैन दर्शन के सर्वमान्य विद्वान् हैं । प्रस्तुत लघु पुस्तिका उनके तीन व्याख्यान् समाहित हैं, जो उन्होंने सेठ भोलाभाई जयसिंह भाई अध्ययन संशोधन विद्याभवन में १९ २० २१ २००० को दिये थे। प्रथम व्याख्यान में जैनदर्शन में श्रद्धा (सम्यक् दर्शन) का विश्लेषण किया गया है। द्वितीय में मतिज्ञान के स्वरूप को स्पष्ट किया गया है और तीसरे व्याख्यान का विषय केवलज्ञान रहा है । इन तीनों विषयों पर प्रो० शाह ने सम्पूर्ण भारतीय संस्कृति के परिप्रेक्ष्य में तुलनात्मक अध्ययन प्रस्तुत किया है और साथ ही उसमें जैनदर्शन के वैशिष्ट्य को अभिव्यक्ति दी है। पुस्तक आकार में छोटी अवश्य है, परन्तु प्रकार में गम्भीर है। शोधार्थियों के लिये यह निश्चित ही उपयोगी होगी।
प्रवचनसार की अशेष प्राकृत संस्कृत शब्दानुक्रमणिका- संग्राहक और सम्पादक - डॉ० के० आर० चन्द्र एवं कु० शोभना आर० शाह; प्रकाशक- प्राकृत टेक्स्ट सोसायटी, अहमदाबाद ३८०००९; प्रथम संस्करण - २००० ई०; आकारडिमाई; पृष्ठ ४+६२; मूल्य- ६० रुपये ।
प्रस्तुत पुस्तिका आचार्य कुन्दकुन्द के प्रवचनसार की शब्दानुक्रमणिका है जिसे प्राकृत भाषा के विश्वविश्रुत विद्वान् डॉ० के०आर० चन्द्रा ने तैयार की है। इसका महत्त्व इस दृष्टि से है कि इन शब्दों पर भाषाविज्ञान के आधार पर विचार - मन्थन और शौरसेनी तथा अर्धमागधी की पूर्वापरता पर चिन्तन किया जा सकता है। प्रवचनसार की पचासों पाण्डुलिपियाँ विभिन्न ग्रन्थ भण्डारों में मिलती हैं जिनमें प्रादेशिक प्राकृतों का प्रभाव होना स्वाभाविक है। इस तथ्य की भी उपेक्षा नहीं की जा सकती। फिर भी इस लघु पुस्तिका का उपयोग किसी सीमा तक तो हो ही सकता है। इसी प्रकार का कार्य अन्य प्राकृत ग्रन्थों का भी यदि हो सके तो हमारा अध्ययन क्षेत्र परिपक्व हो सकता है।
Sardeśarāsaka of Abdala Rahamāna, Editor -- Prof. H.C. Bhayani, Publisher-- Prakrit text Society, Ahmedabad-380009,
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