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अस्सयुद्धं महिसयुद्धं, उसभयुद्धं अजयुद्धं, मेण्डयुद्धं कुक्कुटयुद्धं वट्टकयुद्धं......इत्यादि)।५
उस समय खेले जाने वाले जुए निम्नवत् थे- अट्टपद (शतरंज), दसपद, आकास, परिहार पथ, संतिकरवलिका घटिका सलाकहत्थ, अक्ख पङ्गचीर, बङ्कक, मोक्खचिक, चिङ्गलिक, पताक्हक, रथक अक्खरिका मनेसिक- (एवरूपं जूतप्पमादट्ठानानुयोगं अनुयुत्ता विहरन्ति सेय्यथिदं अट्ठपदं दसपदं आकासं परिहारपथं सन्तिकं खलिकं घटिकं सलाकहत्थं अक्खं पङ्गचीरं वङ्ककं मोक्खचिकं इत्यादि)।६ ___'सामञफलसुत्त' में जिन व्यवसायों का उल्लेख हुआ है, वे हैं- हस्ति आरोहण, अश्वारोहण, रथिक धनुहि कल्पक सैनिक अधिकारी, आळारिक, चेलक, शूर, नाई, माली, रजक पेसकार, नलकार कुम्भकार, गणक इत्यादि (यथा नु खो इमानि भन्ते पुथुसिप्पायतनानि सेय्यथिदं हत्थारोहा अस्सारोहा रथिका धनुग्गहा चेलका चलका पिण्डदायका उग्गा राजपुत्ता पविखन्दिनो इत्यादि)।
दीघनिकाय में तत्कालीन दार्शनिक सिद्धान्तों और मतों का उल्लेख प्राप्त होता है। पूरण कस्सप, मक्खलिगोसाल, अजित केसकम्बल, पकुधकच्चायन और निगण्ठ नातपुत्त जैसे आचार्यों के विचारों में भौतिकवाद, नास्तिकता, जड़वाद आदि के बीज विद्यमान थे। इनके अतिरिक्त अन्य विचारकों के उल्लेख ब्रह्मजालसुत्त में हुए हैं जिन्हें किसी सम्प्रदाय विशेष से जोड़ा नहीं गया है, यथा आत्मा और लोक दोनों नित्य हैं (सस्सतो अत्ता च लोको च वझो कूटट्ठो एसिकट्ठायिट्ठितो)।'
आत्मा और लोक अंशत: नित्य और अंशत: अनित्य हैं- (सन्ति भिक्खवे एके समणब्राह्मणा एकच्च सस्सतिका एकच्च सस्सतिका एकच्चं सस्सतं एकच्चं असस्सतं अन्तानं च लोकं च पञपेन्ति चतुहि वत्थूहि) - लोक सान्त है या अनन्त(सन्ति भिक्खवे एके समणा ब्राह्मणा अन्तानन्तिका अन्तानन्तं लोकस्स पज्ञापेन्ति चतूहि वत्थूहि)।१०
इसके अतिरिक्त अनेक दार्शनिक प्रश्नों की सूची उपलब्ध होती है जिनसे पता चलता है कि उस समय ऐसे प्रश्नों पर विचार करने वाले उपलब्ध थे, जैसे-तेविज्जसत्त में ब्रह्मलोक प्राप्ति का प्रश्न उठाया गया है, बुद्ध ने अपने उपदेश में बतलाया कि परलोक में जीव की उत्पत्ति मेत्ता, करुणा, मुदिता तथा उपेक्खा- इन चार ब्रह्मविहारों का अभ्यास करने से होती है।
दीघनिकाय में विविध धार्मिक सम्प्रदायों का भी उल्लेख मिलता है जो अनेक व्रतों और क्रियाओं का अनुष्ठान किया करते थे। वे अपने पारमार्थिक लाभ से भिन्न लौकिक यश और भौतिक लाभ के लिए प्रयत्नशील थे। ऐसे उल्लेख ब्रह्मजालसुत्त में मिलते हैं। कुहका, लपका, नेमित्तिका, निप्पेसिका लाभेन लाभं निजिगिंसितारो आदि। इनमें जादू-टोना करने वाले थे जो अपने विविध विद्याओं से लोगों को ठगते थे।११
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