Book Title: Sramana 2001 01
Author(s): Shivprasad
Publisher: Parshvanath Vidhyashram Varanasi

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Page 160
________________ विद्यापीठ के प्रांगण में परिसर में नवनिर्माण कार्य पूर्णता की ओर यह अत्यन्त प्रसन्नता का विषय है कि पूज्य आचार्य श्री राजयशसूरीश्वर जी म० सा० के शुभाशीर्वाद और प्रेरणा से पार्श्वनाथ विद्यापीठ परिसर में प्रारम्भ हुए दोनों भवनों का निर्माण कार्य लगभग पूर्ण हो चुका है। ९०० वर्ग फुट में निर्मित उपा० यशोविजय स्मृति मन्दिर का आकार पिरामिड जैसा है। इसमें उपाध्याय जी की यशोगाथाओं का रेखांकन किया जायेगा और इसी में ध्यान और योग का प्रशिक्षण भी दिया जायेगा। पूज्य राजयशसूरीश्वर विद्या भवन में ८ कमरों का निर्माण कार्य पूर्ण हो चुका है। इन सभी का उपयोग शोध-छात्रों और अतिथियों के आवास के लिये हो सकेगा। इसके निर्माण से विद्यापीठ में छात्रावास की कमी काफी हद तक दूर हो गयी है। अब यहां विदेशी छात्र भी सरलता से ठहर सकते हैं। भोजनशाला प्रारम्भ हो जाने से बाहर से आकर यहाँ अध्ययन करने वाले शोध-छात्रों और विद्वानों को भी इसका लाभ मिलने लगा है। उक्त सभी निर्माणकार्य संस्थान के निदेशक प्रो० भागचन्द्र जैन के अथक प्रयत्नों से पूर्ण हुआ। इण्डियन इस्टिट्यूट ऑफ एडवान्सड स्टडी, राष्ट्रपति निवास, शिमला द्वारा पार्श्वनाथ विद्यापीठ को मान्यता विद्यापीठ के लिये यह अत्यन्त गौरव का विषय है कि प्रो० भागचन्द्र जैन 'भास्कर' के प्रयत्नों से केन्द्रीय सरकार द्वारा स्थापित संस्था 'इण्डियन इस्टिट्यूट ऑफ एडवान्सड स्टडी, शिमला ने पार्श्वनाथ विद्यापीठ को जैन शैक्षणिक कार्यों के लिये सहयोगी संस्था के रूप में मान्यता प्रदान की है। इसके अन्तर्गत दोनों ही संस्थाओं के परस्पर सहयोग से संगोष्ठियां, कार्यशालायें, व्याख्यान, प्रकाशन एवं शोध योजनायें आदि जैसी शैक्षणिक गतिविधियाँ की जा सकेगी। इससे संस्थान के ऊपर आर्थिक बोझ कम हो जायेगा और उसे मात्र आतिथ्य की व्यवस्था करनी होगी, यहाँ यह उल्लेखनीय है कि उक्त संस्थान ने बौद्ध संस्कृति से सम्बद्ध शैक्षणिक कार्यों के लिये तिब्बतन रिसर्च इस्टिट्यूट, सारनाथ एवं वैदिक संस्कृति से सम्बद्ध शोधकार्यों के लिये विश्वभारती, शान्ति निकेतन को सहयोगी संस्था के रूप में मान्यता प्रदान की है। इस सम्बद्धता से पार्श्वनाथ विद्यापीठ की शोध प्रवृत्तियों में और गति आ जायेगी। इसी के अन्तर्गत आगम तथा अन्य जैन साहित्य के सम्पादन, अनुवाद एवं प्रकाशन में भी सहयोग हो सकेगा। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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