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सामाजिक विधान पितृपरम्परागत वर्षों पर आधारित था। अम्बट्ठसुत्त से ज्ञात होता है कि ब्रह्मा के विभिन्न अंगों से चार वर्णों की उत्पत्ति की प्राचीन पौराणिक कल्पना के आधार पर ब्राह्मण अपने को क्षत्रियों और श्रमणों से श्रेष्ठ समझते थे--- चत्तारों में भो गोतम, वण्णा- खत्तिया, ब्राह्मणा वेस्सा सुद्दा। इमेसं हि भो गोतम चतुनं वण्णानं तयो वण्णा-खत्तिया च वेस्सा च सुद्दा च अञदत्थु ब्राह्मणस्सेव परिचारिका सम्पज्जन्ति।२
ब्राह्मणों और क्षत्रियों के बीच होने वाले अन्तर्जातीय विवाहों की स्थिति कुछ इस प्रकार है- क्षत्रिय पुरुष और ब्राह्मण स्त्री अथवा ब्राह्मण पुरुष और क्षत्रिय स्त्री से उत्पन्न पुत्र ब्राह्मणों से जल और आसन-भोजन तथा यज्ञ के अवसर पर निमन्त्रण, वेदों की शिक्षा तथा विवाह की सुविधा पाता था, लेकिन क्षत्रिय उसे राजा नहीं बनाते थे। ब्राह्मणों द्वारा जाति बहिष्कृत व्यक्ति ब्राह्मण घर में उपर्युक्त सुविधाएं नहीं पाता था, लेकिन क्षत्रियों द्वारा जातिबहिष्कृत व्यक्ति सारी सुविधाएं पाता था।
ब्राह्मण अपने सामाजिक सम्मान की रक्षा कर लेते थे यहाँ तक कि एकबार बुद्ध की महत्ता से पूर्णत: सन्तुष्ट सोणदण्ड ने जनता के बीच उनका अभिवादन आदि करने में संकोच किया था। बुद्ध स्वयं समाज में जातिभेद को महत्त्व नहीं देते थे फिर भी सामान्य लोगों की मान्यता का आदर करते थे। यही कारण है कि सोलह परिष्कारों और त्रिविध सम्पदावाली यज्ञविधि का कूटदन्त को उपदेश देते हुए चक्रवर्ती राजा तथा पुरोहित के आवश्यक गुणों में मातृ एवं पितृ पक्ष से उच्चकुलीन होने के गुण को सम्मिलित किया है— राजा महाविजितो अट्ठहङ्गेहि समत्रागतो। उभतो सुजातो मातितो च पितितो च।३
शूद्रों को समाज में निम्नतर समझा जाता था, लेकिन इसके कुछ अपवाद भी हैं। राजा ईक्ष्वाकु के दासीपुत्र ‘कण्ह' जैसे कुछ व्यक्तियों का उल्लेख मिलता है, जिन्होंने अपनी शिक्षा और आध्यात्मिक उपलब्धियों के आधार पर समाज में ऋषिपद प्राप्त किया था। सम्भव है उस समय शिक्षा देने और पात्रों को उचित स्थान देने में किसी प्रकार का भेदभाव नहीं रखा जाता था। इसीलिए वेश्यापुत्र 'जीवक' वैद्यक की श्रेष्ठ शिक्षा प्राप्त करने और अजातशत्रु का राजवैद्य नियुक्त होने में सफल हुआ।
जनता के मनोरञ्जन के साधन निम्नवत् थे- नृत्य, गीत, संगीत, नाटकलीला, गागर बजाना, लोहे की गोली का खेल, बाँस का खेल, हस्तियुद्ध, अश्वयुद्ध, महिष युद्ध, वृषभयुद्ध, बकरों का युद्ध, भेडों का युद्ध, मुर्गा लड़ाना, लाठी का खेल, मुष्टियुद्ध तथा युद्ध प्रदर्शन- (यथा वा पनेके भोन्तो समणब्राह्मणा सद्धादेय्यानि भोजनानि भुञ्जित्वा ते एवरूपं विसूकदस्सनं अनुयुत्ता विहरन्ति सेय्यथिदं-नच्चं गीतं वादितं पेक्खं अवखानं पाणिस्सरं वेताकं, कुम्भथूणं, सोभनकं चण्डालं वंसं धोवनं हत्थियुद्ध,
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