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वि०सं० १३२७ के एक प्रतिमालेख में मदनप्रभसूरि का;३ मुनिसुव्रत जिनालय, मातर से प्राप्त वि०सं० १३७० के एक प्रतिमालेख में मदनप्रभसूरि के शिष्य भद्रेश्वरसूरि का; वि०सं० १३७५ और १३८० के एक-एक जिनप्रतिमाओं पर भद्रेश्वरसूरि के शिष्य विजयसेनसूरि का,५ वि०सं० १४१० से १४२९ तक की ५ प्रतिमाओं पर विजयसेनसूरि के शिष्य रत्नाकरसूरि का नाम मिलता है। इसी प्रकार १४३२ से १४५४ तक प्रतिष्ठापित ७ जिनप्रतिमाओं एवं वि०सं० १४४६ के एक स्तम्भलेख पर रत्नाकरसूरि के पट्टधर हेमतिलकसूरि का और वि०सं० १४४६ से १४७१ तक की ९ जिनप्रतिमाओं पर हेमतिलकसूरि के पट्टधर उदयाणंदसूरि का नाम मिलता है। इसे तालिका के रूप में निम्न प्रकार से स्पष्ट किया जा सकता है
मदनप्रभसूरि (वि०सं० १३२७) १ प्रतिमालेख भद्रेश्वरसूरि (वि०सं० १३७०) १ प्रतिमालेख विजयसेनसूरि (वि०सं० १३७५-१३८०) २ प्रतिमालेख रत्नाकरसूरि (वि०सं० १४१०-१४२९) ५ प्रतिमालेख हेमतिलकसूरि (वि०सं० १४३२-१४५४) ७ प्रतिमालेख एवं १ स्तम्भलेख उदयाणंदसूरि (वि०सं० १४४६-१४७१) ९ प्रतिमालेख
चूंकि सादड़ी से प्राप्त प्रतिमालेख के आधार पर मनितिलकसरि का समय वि०सं० १५०१ सुनिश्चित है और सामान्य रूप से एक आचार्य का नायकत्त्व काल २० वर्ष माना जाये तो उक्त लेख में उल्लिखित हेमतिलकसूरि का समय वि० सं० १४४० के आस-पास ठहरता है
हेमतिलकसूरि (वि०सं० १४४०) वीरचन्द्रसूरि (वि०सं० १४६०) जयाणंदसूरि (वि०सं० १४८०) मुनितिलकसूरि (वि०सं० १५०१ में पार्श्वनाथ की पंचतीर्थी प्रतिमा के प्रतिष्ठापक)
जैसा कि ऊपर हम देख चुके हैं ब्रह्माणगच्छीय रत्नाकरसूरि के पट्टधर हेमतिलकसूरि (१४३२-१४५४) का भी ठीक यही समय है। इस प्रकार समसामयिकता और नामसाम्य के आधार पर वि०सं० १४४६ के वरमाण स्तम्भलेख में उल्लिखित ब्रह्माणगच्छीय हेमतिलकसरि को वि०सं० १५०१ के सादड़ी के लेख में उल्लिखित मुनितिलकसूरि की चौथी पीढ़ी के पूर्वज हेमतिलकसूरि से अभिन्न माना जा सकता है। चूंकि इस काल में किन्ही अन्य गच्छों में भी इस नाम के (हेमतिलकसूरि) कोई आचार्य नहीं हुए हैं, इससे भी उक्त अनुमान की पुष्टि होती है। इस प्रकार सादड़ी
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