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उत्तरदायित्व तीर्थङ्कर ऋषभदेव तथा उनके पुत्र चक्रवर्ती भरत ने बखूबी निभाया इसलिए उन्हें भी कुलकर जैसा सम्मान देकर हमने अपनी कृतज्ञता व्यक्त की ।
प्रागैतिहासिक महिलाओं का इतिहास तीर्थङ्कर ऋषभदेव के इतिहास से जुड़ा हुआ है जिसका वर्णन जिनसेन ने अपने आदिपुराण में किया है। प्राचीनतम महिला के नाम की खोज की जाये तो हमारा ध्यान सर्वप्रथम अतिबल विद्याधर की पत्नी मनोहरा राज्ञी पर टिक जाता है जिसके विषय में कहा गया है कि वह कामदेव का विजयी बाण जैसी सुन्दर, पति के लिये हास्यरूपी पुष्प से शोभायमान लता के समान प्रिय तथा जिनवाणी के समान हित चाहने वाली और यश को बढ़ाने वाली थी (४.१३० - १) । मनोहरा की ये चारों विशेषतायें नारी के लिए धरोहर रही हैं। उसके जीवन का भव्य प्रासाद इन्हीं चारों स्तम्भों पर खड़ा है।
मनोहरा के क्रम में वज्रबाहु की रानी वसुन्धरा, वज्रदन्त की रानी लक्ष्मीवती और उसकी पुत्री श्रीमती का नाम भी उल्लेखनीय है । वज्रबाहु के द्वारा अपने पुत्र ललितांगदेव के जीवरूप में आये वज्रसंघ के लिये श्रीमती की याचना करना नारी के प्रति सम्मान प्रदर्शित करना ही समझा जा सकता है। दमधर नामक मुनिराज से वज्रसंघ और श्रीमती के भवान्तरों का वर्णन, मतिवर, आनन्द, धनमित्र और अकम्पन तथा शार्दूल, नकुल, वानर और सूकर के भवान्तरों का साथ-साथ चलना, तथा आठवें भव में वज्रसंघ का तीर्थङ्कर होना और श्रीमती का दानतीर्थ के प्रवर्तक के रूप में श्रेयांस राजा के नाम से जन्म ग्रहण करना भी नारी की अस्मिता का ही सूचक है।
भवान्तरों के वर्णन के प्रसंग में जिनसेन ने सूर्यप्रभदेव के गगनगामी विमान को देखकर जातिस्मरण आदि का वर्णन किया है। इसी वर्णन परम्परा में उन्होंने श्रीधर, वज्रनाभि और अहमिन्द्र की पर्यायों में भ्रमण करता हुआ वज्रसंघ का जीव अन्तिम कुलकर नाभिराज और उनकी पत्नी मरुदेवी के पुत्र के रूप में जन्में ऋषभदेव का वर्णन किया है । श्रीमती का जीव भी स्त्री पर्याय छेदकर केशव आदि के रूप में आगे बढ़ता हुआ श्रेयांस राजा बना। इधर ऋषभदेव की पत्नी के रूप में कच्छ और महाकच्छ की बहनें यशस्वती और सुनन्दा परिदृश्य में आयीं । यशस्वती से भरत, वृषभदेव आदि पुत्र और ब्राह्मी नाम की पुत्री हुई तथा सुनन्दा से पुत्र बाहुबली तथा पुत्री सुन्दरी का जन्म हुआ। जैन महिलाओं की कहानी ब्राह्मी और सुन्दरी से ही प्रारम्भ होती है। नीलांजना अप्सरा का नृत्य भगवान् ऋषभदेव के वैराग्य का कारण बना यह भी एक महिला के लिये गौरव का ही विषय कहा जायेगा। यहां यह उल्लेखनीय है कि भागवत (५.४.८; ५५७) में सुनन्दा के स्थान पर जयन्ती का नाम आता है ।
जिनसेन ने ब्राह्मी को दीप्ति के समान और सुन्दरी को चांदनी के समान बताया (६.७०) और यह कहा कि विद्यावती स्त्री भी सर्वश्रेष्ठ पद को प्राप्त करती है- नारी
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