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समन्तभद्रकृत सिद्धान्तरसायनकल्प- उग्रादित्याचार्य ने कल्याणकारक की रचना समन्तभद्र द्वारा रचित अष्टाङ्गयुक्त ग्रन्थ (सम्भवत: अष्टाङ्गसंग्रह) के आधार पर की थी, जैसा कि उनके निम्न कथन से स्पष्ट है।
अष्टांगमध्यखिलन समन्तभद्रैः प्रोक्तं रसविस्तारवचो विभवैर्विशेषात्। संक्षपतो निगदितं तदिहात्मशक्त्या कल्याणकारकमशेषपदार्थयुक्तम्।।
कल्याणकारक, २/८६. आचार्य समन्तभद्र ने 'सिद्धरसायनकल्प' नामक १८,००० श्लोकयुक्त ग्रन्थ की रचना की थी। दुर्भाग्यवश आज यह ग्रन्थ अनुपलब्ध है। कहीं-कहीं इसके कुछ श्लोक मिलते हैं। इसमें जैन पारिभाषिक शब्दों के प्रयोग और संकेत के भी उपयोग किए गए हैं। जैसे- 'रत्नत्रयौषध' कहने से जैन सिद्धान्तानुसार सम्यक्दर्शन, ज्ञान
और चारित्र इन तीनों रत्नों का ग्रहण होता है। दूसरे अर्थ में पारद, गन्धक और पाषाण ये तीनों पदार्थ लिए जाते हैं। इनसे निर्मित रसायन वात, पित्त, कफ इन त्रिदोषों को नष्ट करता है। औषधि निर्माण में द्रव्यों के प्रमाणों को तीर्थङ्करों की संख्या और चिह्नों के द्वारा सूचित किया गया है। जैसे- रससिन्दूर निर्माण में पारद, गन्धक का प्रमाण 'सूतं केसरी गंधकं मृगनवा-सारदूम' कहा गया है। यहाँ केशरी महावीर का चिह्न है
और महावीर २४ वें तीर्थङ्कर हैं, अत: पारद् की मात्रा २४ भाग लेनी चाहिए। मृग १६ वें तीर्थङ्कर का चिह्न होने से गंधक की मात्रा १६ भाग लेनी चाहिए।
पुष्पायुर्वेद भी समन्तभद्र की कृति है। उन्होंने इसमें अठारह हजार जाति के कुसुम (पराग रहित) पुष्पों से ही रसायनौषधियों के प्रयोगों को लिखा है। इस ग्रन्थ में (ईस्वी सन् तीसरी शती) की कर्णाटक की लिपि उपलब्ध होती है। अभी तक पुष्पायुर्वेद की रचना जैनाचार्यों के अतिरिक्त और किसी ने नहीं किया है।४
४. आचार्य पूज्यपाद- पूज्यपाद का काल विक्रमी छठी शताब्दी का प्रारम्भ प्रमाणित होता है। व्याकरण, वैद्यक, योगशास्त्र, रसशास्त्र और दर्शन के क्षेत्र में इनका अत्यन्त महत्त्वपूर्ण योगदान है। इन्होंने गगनगामिनी विद्या में कौशल प्राप्त किया था। यह पारद के विभित्र प्रयोगों के ज्ञाता थे। बौद्ध दार्शनिक नागार्जुन से भित्र एक अन्य नागार्जुन भी थे, जो पूज्यपाद के भान्जे थे। इनको पूज्यपाद ने अपनी वैद्यक विद्या सिखाई थी। विक्रम की पन्द्रहवीं शताब्दी के विद्वान् कवि मंगराज ने कनड़ भाषा में खगेन्द्रमणि दर्पण नाम का एक चिकित्सा ग्रन्थ रचा है और उसमें उन्होंने पूज्यपाद के वैद्यक ग्रन्थ का भी आधार रूप में उल्लेख किया है। अनेक रसयोग उनके नाम से प्राप्त होते हैं। बसवराजीयम, योगरत्नाकर, रसप्रकाशसुधाकर, कल्याणकारक आदि ग्रन्थों में उनका उल्लेख प्राप्त होता है।
आचार्य पूज्यपाद ने कल्याणकारक नामक वैद्यक ग्रन्थ का निर्माण किया था।
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