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के छ: मास पर्यन्त आयम्बिल की उग्र तपश्चर्या से प्रभावान्वित है। इस कथा में अनेक अवान्तर कथाएँ हैं जो परवर्ती लोक-कथाएँ सम्भावित हैं। उत्सर्ग-अपवाद और आसीनिरासी भाव का प्रणयन आदि सम्भवत: चैत्यवास की विचारधाराओं से प्रभावित हो।
जयशेखरसूरिजी ने अपनी प्रतिभा से काव्य में याप्रसंग अनेकश: उपमाएँ और उदाहरण युक्त उपदेशादि गुंफित श्लोक दिये हैं। साध्वी जी ने अपने महाप्रबन्ध में अर्थ सहित वे सब उद्धृत किये हैं।
इस चरित्र महाकाव्य की अवान्तर कथाओं में कुछ तो उल्लेख मात्र किया गया है। जैसे धर्मदत्त-सुरूपा कथा २ गोपाल कवि कथा ३ सोमिल द्विज कथा ४ शिव विप्र कथा, ५ विजयपाल नृप कथा, ६. गुणवर्मा कथा, ७ अगडदत्त मुनि कथा, ८. धनश्री कथा, ९. शीलवती कथा, १०. वसुदत्त कथा, ११. अरिदमन कथा में प्रसंगोपात उल्लेख है पर इनमें १. गुणवर्मा कथा (श्लोक) १०६३ से १६१३), २. धनश्री कथा (श्लोक २१६१ से २३१६), ३. शीलवती कथा (श्लोक २४९२ से २८०५) एवं वसुदत्त कथा का श्लोक २८८० से ३०३६ तक का पादटिप्पणी में उल्लेख है। - इस धम्मिलकुमारचरित्र की कथावस्तु में कथा-पात्रों आदि की ३४ तक की सूची विस्तृत है। यहाँ पू. साध्वीश्री मोक्षगुणाश्री जी के महाकवि जयशेखरसूरि, प्रथम भाग के छठे प्रकरण से धम्मिलचरित्र साभार प्रकाशित किया जा रहा है।
भरतक्षेत्र के मध्यभाग में समृद्धशाली कुशाग्रपुर नगर था। इस नगर के मन्दिर राजमहल से भी सुन्दर आदर्शमय थे। प्रजा धर्मिष्ट थी। राजा जितशत्रु प्रजा का न्यायपूर्वक पालन करने वाला निष्कलंक शासक था। प्रजावत्सल नरेश्वर की पटरानी धारिणी शील गुण सम्पन्न और अत्यन्त सुन्दरी थी। राजकुमार अमित्रदमन रूपवान् और गुणवान् तो था पर मन्दबुद्धि होने के कारण राजा से भी अधिक चिन्ता प्रजा को थी। प्रजा अपने भावी शासक के लिए अपने इष्टदेव से प्रार्थनारत रहती थी कि राजकुमार की बुद्धिमन्दता दूर होकर विलक्षणता प्राप्त हो।
इसी कुशाग्र नगर में धनकुबेर सेठ समुद्रदत्त निवास करता था जिसकी अति प्रिय पत्नी सुभद्रा एक आदर्श नारीरत्न थी जिससे श्री लक्ष्मी देवी ने भी अपनी चञ्चलता त्याग कर सेठ की हवेली में ही चिर निवास कर लिया था।
एकदा सौभाग्यवती सुभद्रा ने श्वेत हाथी पर बैठे हुए इन्द्र को स्वप्न में देखा। इन्द्र ने मधुरवाणी से उसे कहा सुभद्रा! तुम्हें अल्प समय में श्री और सुमतियुक्त पुत्ररत्न की प्राप्ति होगी। यह अमृत वाणी सुनते ही वह पति के पास गयी और स्वप्न का वृत्तान्त कहते हुए फल सम्बन्धी पृच्छा की। सेठ ने कहा अपने कुल के आभूषणस्वरूप पुत्र की तुम्हें प्राप्ति होगी। सुभद्रा ने गर्भ धारण किया और समयपूर्ण होने पर सूर्य के समान तेजस्वी पुत्र उत्पन्न हुआ, सभी लोग आनन्दित हुए।
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