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बालक की नाभिनाल छेदकर उसे गाड़ने के लिए गड्डा खोदा गया तो उसमें धन का भण्डार प्रकट हुआ। अपार हर्षपूर्वक सेठ ने खोलकर देखा तो उसमें एक मणि की भी प्राप्ति हुई जिसके लिए परची में लिखा हुआ था कि इस मणि स्पृष्ट पानी को पीने वाला पशु की भाँति जड़बुद्धि मनुष्य भी विद्या प्राप्त कर पण्डितों से भी पूजनीय बन जाता है। सेठ ने प्राप्त सारे धन को पुत्र जन्मोत्सव में व्यय कर दिया।
सेठ समुद्रदत्त को धन भण्डार और मणि की प्राप्ति से इन्द्र के वचनों की दृढ़ प्रतीति हुई और पुत्र का नाम सुरेन्द्रदत्त रखा। पाँच धायों द्वारा धूमधाम से पालन-पोषण होते द्वितीया के चन्द्र की भाँति बड़ा होने लगा। कला के सागर विश्वभूति आचार्य के पास उसे विद्याभ्यास करने भेजा गया। मणि पवित्रित जलपान के प्रभाव से वह तीक्ष्णबुद्धि ज्ञानी होकर शास्त्र समुद्र से पारंगत हो गया।
अमित्रदमन राजकुमार भी सुरेन्द्रदत्त के साथ पढ़ता था। उसी नगर में गुणवान् सेठ सागर निवास करते थे, जिनकी स्त्री का नाम सत्यभामा था। उनकी पुत्री सुभद्रा भी राजकुमार और श्रेष्ठिपुत्र सुरेन्द्रदत्त के साथ ही पढ़ती थी। जिस प्रकार तीव्रगति वाले के साथ चलने वाला मनुष्य पीछे रह जाता है उसी प्रकार राजकुमार पढ़ाई में पीछे रह गया। इसी प्रकार अन्य विद्यार्थी भी पढ़ते थे। एक दिन आचार्य विश्वभूति ने विद्यार्थियों की परीक्षार्थ कहा- बुद्धिमान विद्यार्थियों! जो राजा को दोनों पैरों से लात मारे उसे क्या दण्ड मिले? विद्यार्थियों ने कहा मृत्युदण्ड दिया जाना चाहिए अथवा उसके पैर काटे जाएँ। यह सुनकर सुरेन्द्रदत्त ने कहा जो राजा को पैर से मारता है वह आदरणीय है!
इस उत्तर के आशय से अनभिज्ञ सभी विद्यार्थी कोलाहल करने लगे। सुरेन्द्रदत्त ने कहा राजा जब अपने बालक को खोले में या गोद में खेलाता है और वह लात मारे तो राजा के प्राणप्रिय पुत्र को कौन मार सकता है? वह तो आदर ही पावेगा। __सुरेन्द्रदत्त का बुद्धि कौशल्य देखकर अध्यापक अपने श्रम को सफल मानने लगा। सभी विद्यार्थियों का मस्तक नीचा हो गया। सुरेन्द्रदत्त गुरु का बहुमान करता था, अत: गुरुजी ने उसके भावी कल्याण हेतु इष्टदेव की पूजा करने का विचार किया। उन्होंने शिष्यों को आज्ञा दी कि बुद्धिशालियों! तुम लोग पूजा हेतु स्वर्णाभ कमल की माला लाओ।
अन्य शिष्य उत्तम पुष्प लाए जिनसे पण्डित जी पूजा करने लगे। मन्दबुद्धि राजकुमार घर से सुनहरी कान्तिवाली पद्ममाला नामक दासी को ले आया। पूजन के समय अमङ्गलकारी दासी का आगमन देखकर सोचा, मैंने सुरेन्द्रदत्त के कल्याण हेतु पूजन का आयोजन किया किन्तु यह जड़बुद्धि दासी को ले आया जिससे लगता है कि वह पहले कुबेर जैसा धनवान् होकर नीच स्त्री के संग से आपदाग्रस्त होगा।
फिर से पण्डित ने स्नान किया। विद्यार्थियों तथा सुभद्रा से विशेष हास्यपात्र हुआ
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