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धम्मिल ने उपचार करके पद्मावती का कुष्ट रोग मिटा दिया जिससे वसुदत्त राजा ने प्रसन्न होकर धम्मिल के साथ पद्मावती का पाणिग्रहण करा दिया। अब चम्पापति के साथ सुलह कराने के लिए धम्मिल चम्पानगर गया। कहते हैं कि प्रीति भंग कराने वाले तो बहुत होते है पर भग्न प्रीति को जोड़ने वाले जगत् में विरले ही होते हैं।
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धम्मिल चम्पानगर आया, उस समय दरबार का हाथी छूट जाने से लोगों में कोलाहल मचा हुआ था । श्रेष्ठी पुत्र सागरदत्त आठ कन्याओं के साथ विवाह करने जा रहा था, किन्तु उन्मत्त हुए हाथी को देखकर कन्याओं को छोड़कर वह पलायन कर गया। निराधार विह्वल कन्याएँ वहीं खड़ी थीं । धम्मिल कुमार ने अपनी कला कौशल्य से मदोन्मत्त हाथी को वशवर्ती कर कन्याओं को बचा लिया। उसने हाथी महावत को सौंपा और स्वयं राजसभा में आया। राजा ने अपने जमाता द्वारा हाथी वश में किया ज्ञातकर प्रसन्नतापूर्वक उसका सत्कार किया । धम्मिल अपनी तीनों स्त्रियों से मिला और अश्वहरण के बाद का सारा वृत्तान्त बतलाया। उन आठों कन्याओं ने सागरदत्त से विवाह करना अस्वीकार कर अपनी रक्षा करने वाले धम्मिल कुमार के साथ विवाह किया। धम्मिल ने चम्पापति और उसके भाई वसुदत्त राजा के साथ सुलह करा दी। वसुदत्त पद्मावती को धम्मल के पास चम्पापुरी भेज दिया।
एक दिन धम्मिलकुमार अपने महल में हिण्डोला खाट पर बैठा आराम कर रहा था। उस समय अकस्मात आकाश से एक विद्याधरी विद्युल्लता उतर कर आयी। उसने अपना परिचय देकर कहा— खङ्ग साधक को मार कर आप भाग क्यों आये ? धम्मिल ने कहा- श्वेत ध्वज का संकेत जो मिला। उसने कहा ओह ! संकेत देने में भूल हो गई थी। फिर धम्मिल की आज्ञा से अठारह विद्याधारियाँ अपने माता-पिता के साथ वहाँ आईं और धम्मिल के साथ उनका पाणिग्रहण हुआ । इसप्रकार कुल तीसों स्त्रियों के साथ धम्मिल चम्पानगर में आनन्दपूर्वक रहने लगा ।
एक दिन पारस्परिक वार्ता प्रसंग में विद्युन्मती ने कमला से पूछा बहिन ! अपने पति को लात मारने का क्या प्रयोजन था ? उसने कहा यदि इस पैर से पति को लात न मारती तो तुम सब ऐसे पतिदेव को कहाँ से प्राप्त करती। मेरा पैर तुम 'सबके लिए उपकारी है अतः इसकी पूजा करो। इन शब्दों द्वारा सबको विनोद वार्ता से आनन्दित कर दिया।
विद्युन्ती ने धम्मिल से कहा नाथ! अपन मात्र शरीर से जुदे हैं किन्तु हृदय से एक हैं। आपकी जिह्वा पर हमेशा किसका नाम रहता है वह वसन्ततिलका कौन है । धम्मिल ने वसन्ततिलका का वृतान्त कहा। यह सुनकर विद्युन्मती ने कहा, देव आप कृपया मुझे आज्ञा दें, मैं आकाश मार्ग से जाकर उसकी खोज खबर ले आऊँ । अनुमति पाकर वह शीघ्र जाकर उसके समाचार ले आई और धम्मिल से कहा
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