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धायमाता ने राजकुमारी को बहुत समझा कर कहा कि तुम धम्मिल कुमार के साथ बगीचे में अवश्य जाओ। उदाहरण के तौर पर उसने स्वच्छन्दता से दुःखी होने वाली वसुदत्त की वार्ता कही। फिर राजा लोग भी हित वचन न मानने से अरिदमन राजा की भाँति कष्ट पाते हैं। राजकुमारी कमला ने धायमाता ने वचन स्वीकार किया तो उसी रात्रि में कमला का धम्मिल के साथ गांधर्व विधि से पाणिग्रहण हो गया। उसे लेकर, प्रात:काल उद्यान में जाने से राजकुमार को प्रतीति हो गई कि कमला धम्मिल की पत्नी है। सन्ध्या समय विविध क्रीड़ाएँ कर वे उद्यान से वापस घर आ गये और धम्मिल-कमला का वैवाहिक जीवन सुखपूर्वक व्यतीत होने लगा।
एक दिन कमला के साथ प्रेम कलह में धम्मिल के मुँह से निकल गया किवसन्ततिलका तुम अति कोपायमान न बनो। कमला ने यह सुनते ही क्रुद्ध होकर धम्मिल पर पाद प्रहार किया। उसने उसे मनाने की बहुत चेष्टा की आखिर कमला के शान्त न होने से वह घर से बाहर निकल पड़ा।
उसने राजमार्ग पर चलते-चलते किसी नाग देवता का मन्दिर देखा। वहाँ नगर के समृद्धिशाली सार्थवाह की तरुण पुत्री नागदत्ता नागदेव की पूजा करने आयी हुई थी। उसने पूजनोपरान्त प्रार्थना की कि मुझे अपने योग्य वर सम्प्राप्त हो। मूर्ति के पीछे छिपकर धम्मिल ने कहा “तुम्हारी इच्छा आज ही पूर्ण होगी" यह सुनकर प्रसत्रतापूर्वक नागदत्ता बाहर निकली, धम्मिल उसे दृष्टिगोचर हुआ। परस्पर वार्तालाप होते प्रीतिदृढ़ हो गई क्योंकि नागदेव के वरदान से विश्वस्तमन थी नागदत्ता। वह उसे रुकने को कहकर घर आई और माता-पिता को नागदेवता के वरदान से अवगत कराया। वे योग्य वर प्राप्ति से प्रसन्न हुए और धूमधाम से नागदत्ता का धम्मिल के साथ पाणिग्रहण करवा दिया। ___चम्पापुरी के राजा कपिल की पुत्री कपिला भी नागदत्ता की प्रिय सखी थी। वे दोनों एक पति से विवाहित होने को संकल्पित थीं। कपिला ने पिता को अवगत कराया। राजा ने इसके लिए स्वयंवर मण्डप की रचना कराई, धम्मिल भी आमन्त्रित किया गया था। कपिला ने उसे वरमाला पहनाई। दोनों का महोत्सवपूर्वक विवाह हुआ। राजा के दिए हुए महल में धम्मिल कपिला और नागदत्ता के साथ सुखपूर्वक रहने लगा।
इधर धम्मिल को तिरस्कत करने के पश्चात राजकमारी कमला अपने मन में अपार खेद खित्र होकर पश्चाताप करने लगी। कवि के वर्णनानुसार उसके ये उद्गार हैं
"अरे! मैंने अपने पति का अपमान करके अमृत कुम्भ को फोड़ दिया, कल्पवृक्ष को जला दिया, चिन्तामणि रत्न को चूर-चूर कर दिया।"
धम्मिल भी उसे स्मरण किया करता था। एक दिन वह गजारुढ़ होकर नगर में घूमने निकला और कमला के गृहद्वार पर आकर हाथी को खड़ा किया। कमला ने नीचे
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