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“स्वामी! मैं पुरुष रूप में वसन्ततिलका के घर गई, वह मैले-कुचैले वस्त्रों में दयनीय हालत में एक कोने में पड़ी थी उसके मुख से केवल 'धम्मिल धम्मिल' नाम ही उच्चरित होता सुनाई देता था। मैंने उसके पास जाकर कुशल समाचार पूछे तो वह मुझे पुरुष वेश में देखकर मौन रही। जब मैने स्त्री रूप धारण किया और उसके पास जाकर कहा मुझे धम्मिल ने यहाँ भेजा है। यह सुनते ही वसन्ततिलका ने अत्यन्त हर्षित होकर बार-बार आपके समाचार पूछे। मैं उसकी दुःखदायी अवस्था ज्ञात कर आई हूँ। धम्मिल ने तत्काल कुशाग्रपुर जाने की तैयारी की। वह सपरिवार अपने नगर की ओर रवाना हो गया। धम्मिल क्रमश: कुशाग्रपुर पहुँचा और वसन्ततिलका के यहाँ अनभ्र वृष्टि की भाँति जाकर मिला। राजा अमित्रदमन ने उसका खूब सत्कार किया और धम्मिल को समृद्धिपूर्ण आवास समर्पित किया। लोगों में सर्वत्र धम्मिल की प्रशंसा हुई और सभी आत्मीय जन मिलने के लिए आए जिन्हें धम्मिल ने दान-मान से सन्तुष्ट किया। धम्मिल के श्वसुर ने यशोमती को लाकर समर्पित किया। अपने पिता की कुम्लाई कीर्तिवल्ली को दान रूपी जल वृष्टि द्वारा फिर से धम्मिल ने नवपल्लवित कर दी।
सांसारिक सुख भोगता हुआ धम्मिल आनन्दपूर्वक रहता था। एक दिन वसन्ततिलका ने उसके निकट बैठकर पछा स्वामिन! कल आप मेरे पास वेश बदलकर कैसे आये? धम्मिल यह सुनते ही चौंका और किसी रहस्य की बात के गुप्त उद्घाटन हेतु उसने कहा---- तुम्हारे मन को आनन्दित करने के लिए ऐसा किया गया था। उसने सोचा अवश्य ही कोई व्यक्ति अदृश्य विद्या से यहाँ आया है, जिसे पकड़ना चाहिये। धम्मिल ने महल की परिधि में सिन्दूर बिछा दिया और स्वयं छिपकर खड़ा रहा। उसने सिन्दूर पर किसी विद्याधर के पदचिह्न देखे और खङ्ग प्रहार द्वारा उसे मारकर जमीन में गाड़ दिया।
एक दिन धम्मिल अपने उद्यान में अशोक वृक्ष के नीचे बैठा था तो उसके पास मेघमाला नामक विद्याधरी आकाशमार्ग से आकर उतरी। उसने कहा-मेरा मेघजय नामक भ्राता तीन दिन पूर्व निकला था उसके न लौटने पर खोज में निकली और आपके द्वारा मारा गया ज्ञात कर क्रुद्ध होकर यहाँ आई, किन्तु आपको देखकर मेरा क्रोध शान्त हो गया क्योंकि मुझे प्रज्ञप्ति विद्या ने कहा था तुम्हारे भाई को मारने वाला ही तुम्हारा पति होगा। अत: अब आप कृपा कर मुझे स्वीकार करें। धम्मिल ने उसकी प्रार्थना स्वीकार कर तुरन्त उसके साथ गांधर्व विवाह कर लिया। अब उसके बत्तीस पत्नियाँ हो गईं। कवि कहते हैं जिस प्रकार बत्तीस दाँतों से मुख, बत्तीस अक्षरों से अनुष्टुप छन्द और बत्तीस लक्षणों से पुरुष सुशोभित होता है उसी प्रकार धम्मिल सुशोभित हुआ।
धम्मिल की स्त्री राजकुमारी कमला के पद्मनाभ नामक पुत्ररत्न उत्पन्न हुआ। वह क्रमश: लालन-पालन होता बड़ा होने लगा। कितने ही अरसे बाद चार ज्ञानधारी धर्मरुचि अणगार के पधारने पर धम्मिलकुमार उन्हें वन्दनार्थ गया। धर्मदेशना श्रवणानन्तर उसने
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