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भावी तीर्थङ्कर ‘अममस्वामी' के रूप में प्रस्तुत किया गया है। वैदिक परम्परा से भिन्न द्रौपदी का कथानक जैन - परम्परा में प्रसिद्ध हुआ है । वासुदेव के रूप में कृष्ण द्रौपदी को मुक्त कराने धातकीखण्ड के अमरकंका जाने का वृत्तान्त जैन- परम्परा में पांचवां आश्चर्य माना जाता है। जैन परम्परा में द्रौपदी कथानक में कुछ और विशेषतायें है जैसे द्रौपदी के पूर्वभव की कथा, जन्म-प्रयोजन, जन्म, जन्मभूमि, माता, पांचों पतियों की प्राप्ति, निदान का प्रतिफल, स्वयंवर शर्त, स्वयंवर के प्रसंग में विद्याधर- गन्धर्व का वृत्तान्त, स्वयं मण्डप में पाण्डवों का आगमन, कुन्ती के स्वयंवर स्थल पर उपस्थिति, द्रौपदी की पूर्वभव कथा बताने वाले पात्रों में अन्तर, पाणिग्रहण संस्कार का स्वरूप, पति - सान्निध्य का नियम, हस्तिनापुर त्याग, कौरव-पाण्डव युद्ध, वनवास के पश्चात् राज्यप्राप्ति, महाभारत के प्रमुख पात्रों द्वारा जिनदीक्षा ग्रहण करना तथा महाप्रस्थान में भी पर्याप्त अन्तर दृष्टिगत होता है। इसी के साथ नागश्री सुकुमालिका सहित अनेक पूर्वभव, विद्याधर द्वारा गाण्डीव प्रदान, वनवास के स्थान पर पाण्डवों का द्वारकागमन, द्रौपदी हरण, कृष्ण द्वारा जरासन्ध वध, द्रौपदी द्वारा जिनदीक्षा ग्रहण आदि भी विशेषताएँ और हैं। द्रौपदी की उत्पत्ति भी यहां यज्ञवेदी से नहीं मानी गयी है । पञ्चपतित्व को पूर्वभवकृत पाप का परिणाम बताकर जैनधर्म ने उसे तार्किक बना दिया। महाभारत युद्ध वस्तुत: जैन परम्परा में जरासन्ध - कृष्ण युद्ध है, कौरव पाण्डव तो उनके सहायक हैं।
द्रौपदी के समान सीता भी एक उच्चतम आदर्श की प्रतीक महिला है। वनवास काल में राम-लक्ष्मण का अतिवीर्य से युद्ध होता है । द्रौपदी की सलाह पर यह युद्ध एक दिलचस्प मोड़ लेता है। सीता को जिन मन्दिर में आर्यिकाओं के साथ छोड़कर राम-लक्ष्मण मनोहर नर्तकी का रूप धारण कर अतिकीर की राज्यसभा में जाते हैं और नृत्यरस में डूब जाने पर उसे बन्दी बना लेते हैं। लक्ष्मण ने जब उसका वध करने लगता है तो सीता उसे अहिंसा का पाठ देती है ।
इसी कथानक में शम्बूक का वध राम से नहीं, लक्ष्मण से होता है। रावण यह सुनकर राम-लक्ष्मण से युद्ध करने आता है और सीता के सौन्दर्य को देखकर उसका हरण कर लेता है। यहां अन्त में सीता जिनदीक्षा ले लेती है।
मन्दोदरी रावण की पटरानी थी। वह बड़ी व्यवहार कुशल थी। रावण को खरदूषण बध से उसी ने रोका। यह एक महिला की दूरदर्शिता थी ।
दशरथ की पत्नी कैकेयी रथ संजालन कला में निपुण थी। उसने युद्ध के समय विशेष चातुर्य से राजा दशरथ के रथ की बागडोर सम्भाले थी जिसके कारण उसे वरदान मिला। जैन- परम्परानुसार राजा दशरथ से 'वर' मांगकर उन्हें प्रतिज्ञा के बन्धन से मुक्त करने, भरत को असमय संसार त्यागने से रोकने तथा राम को वन जाने पर कई अनार्य राजाओं को जीतकर चारों ओर शान्ति स्थापित करने का श्रेय कैकेयी को ही है।
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