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(अ) जालोर
१. जालोर का शिलालेख ५३ वि० सं० १९७५यह शिलालेख जाबालिपुरीय चैत्य को अनुदान देने और निर्माण कार्य से सम्बन्धित है ।
२. जालोर का शिलालेख ५४ वि० सं० १२२१, १२५६, १२६८चौलुक्य महाराजाधिराज कुमारपाल ने पार्श्वनाथ मन्दिर का यहाँ निर्माण करवाया था। इस जिनालय का नाम कुमार (कुंवर) विहार था। अभिलेख में कहा गया है कि कुमारपाल ने जालोर के कांचनगिरि पर हेमसूरि के उपदेश से प्रभावित होकर श्री देवाचार्य से सद् विधिपूर्वक बिम्ब सहित चैत्य बनवाया। इस जिनालय का समरसिंह ने जीर्णोद्धार करवाया। रामचन्द्राचार्य ने सं० १२६८ में इसके ध्वज एवं स्वर्णकलश की स्थापना की व्यवस्था की । गोष्ठिकों सहित श्री श्रीमाल वंश के यशोदव एवं उसके परिवार के लोगों ने इस कार्य में सहायता की।
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३. जालोर का शिलालेख ५५ संवत् १२३९ - प्रतिहार नागभट्ट ने यक्षवसति नामक एक जैन मन्दिर बनवाया था । वत्सराज के समय दुर्ग में ऋषभदेव का मन्दिर विद्यमान था । श्रेष्ठी यशोवीर ने उसमें मण्डप बनवाया। इस शिलालेख में चन्द्रगच्छ का भी उल्लेख है ।
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४. जालोर का शिलालेख ५६ संवत् १२९४ - महावीर चैत्य को अनुदान देने सम्बन्धी विवरण |
५. जालोर का शिलालेख ५७ संवत् १३२० नाणकीय गच्छ से सम्बन्धित। इसमें महावीर स्वामी के मन्दिर के पुजारी भट्टारक राव लक्ष्मीधर द्वारा १०० द्रम्म का अनुदान देने का उल्लेख है। इस अभिलेख में गोष्ठिक शब्द आया है।
६. जालोर का शिलालेख५८ संवत् १३२३ - इस शिलालेख में कहा गया है कि महाराजा चाचिगदेव (चाहमान) के राज्यकाल में नाणकीय गच्छ के चन्दन विहार के महावीर मन्दिर की मासिक पूजा की व्यवस्था हेतु अनुदान प्रदान किया गया, ताकि उसके ब्याज से यह धार्मिक कार्य हो सके। इस अवसर पर गोष्ठिक भी उपस्थित थे।
७. जालोर का शिलालेख ५९ संवत् १३५३. पार्श्वनाथ मन्दिर हेतु नरपति ने महाराजा सामन्तसिंह के राज्यकाल में अनुदान दिया ।
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८. जालोर का महावीर मन्दिर शिलालेख ६० संवत् १६८१. इस लेख में महाराज गजसिंह के शासनकाल में मुंणोत नैणसी के पिता जयमल्ल द्वारा एक जिन प्रतिमा स्थापित किये जाने का उल्लेख मिलता है।
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