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सोनगरा के मन्त्री ने इस मन्दिर हेतु १३ द्रम्म ७ विंशोपक का अनुदान दिया था । वि० सं० १८७३ में जैन संघ ने इसकी मरम्मत करवाकर मूलनायक महावीर स्वामी की प्रतिमा का तपागच्छ के आचार्य विजयजिनेन्द्रसूरि से अभिषेक करवाया। बाद में इस मन्दिर को शिखर युक्त बनवाया गया। तब वि०सं० २०१८ में आचार्य विजययतीन्द्रसूरि के शिष्य आचार्य विद्याचन्द्रसूरि ने मन्दिर की पुन: प्रतिष्ठा की।
इसी प्रकार द्वितीय मन्दिर गणेश चौक में शान्तिनाथ का है । वि०सं० १२१२ में इस मन्दिर के भण्डार हेतु १०० स्वर्ण मुद्राओं का अनुदान प्रदान किया गया, ताकि उनके ब्याज से रथ यात्रा (उत्सव) सम्पन्न हो सके ।
तृतीय मन्दिर भी शान्तिनाथ का है जो गांधी चौक में स्थित है। यह मन्दिर अकबर के समय बनवाया गया। वि०सं० १६८३ में श्रेष्ठी खेमा ने इसमें पार्श्वनाथ की प्रतिमा स्थापित की। उसका अभिषेक तपागच्छीय आचार्य विजयदेवसूरि ने किया।
चतुर्थ मन्दिर पार्श्वनाथ का है जो अपने चमत्कारों के लिये प्रसिद्ध है। शीलविजय के तीर्थमालास्तवन में कहा गया है कि इस मन्दिर को गजनी खां तोड़ना चाहता था किन्तु उसे अत्यन्त कष्ट उठाना पड़ा। तब उसने यहां की प्रतिमा वीरचन्द मूथा को सौप दी। उन्होंने इस मन्दिर का वि० सं० १६७१ में जीर्णोद्धार करवाया।
भीनमाल नगर की पश्चिमी दिशा में गौड़ी पार्श्वनाथ का मन्दिर भी दर्शनीय है। यहां के अधिकांश मन्दिरों का निर्माण सेठियों ने करवाया है। पार्श्वनाथ मन्दिर उन्हीं की देन है। आदिनाथ मन्दिर सेठ जीवण जी एवं नन्दकरण जी ने करवाया। इसी प्रकार धनजी ने पार्श्वनाथ, जगन्नाथ जी ने नेमिनाथ, वर्द्धमान जी ने आदिनाथ तथा अविचलजी ने नेमिनाथ के जिनालय बनवाये हैं । ८६
भीनमाल नगर से ४० मिलोमीटर दूर माण्डोली में भी प्रसिद्ध जैन मन्दिर है, जो गुरु शिखर कहलाता है। यहां आचार्य शान्तिसूरि का श्वेत संगमरमर द्वारा निर्मित प्रतिमा मानो साक्षात् गुरुवर को सामने बैठाकर बनवाई गयी है । ८७ इसके अलावा भीनमाल में जगवल्लभ पार्श्वनाथ मन्दिर और दादावाड़ी भी प्रसिद्ध साधना स्थल हैं । ४८
जालोर जिला के मुण्डवा गांव में महावीर स्वामी का मन्दिर है । प्राप्त विवरण अनुसार वि०सं० ८१३ में वीर प्रभु की मूर्ति की प्रतिष्ठा वैसाला गांव में हुई। बाद में उसी प्रतिमा को वि० सं० १२३३ माण्डव (मुण्डवा) गांव में स्थापित किया गया। "
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जैन धर्म के उत्थान के विभिन्न चरणों का अध्ययन करने हेतु मूर्तिलेखों का भी विशेष महत्त्व है। इनसे प्रतिमा के स्थापक का नाम, स्थापना वर्ष और तीर्थङ्कर की पहिचान के सम्बन्ध में जानकारी मिलती है। जालोर दुर्ग के चौमुखा मन्दिर स्थापित प्रतिमाएं लेखयुक्त हैं। एक प्रतिमा पर वि०सं० १६८३, पश्चिमी द्वार पर कुन्थुनाथ
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