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आबू अभिलेख से ज्ञात होता है कि पार्श्वनाथ मन्दिर में आदिनाथ प्रतिमा स्थापित की गयी। नाणा से प्राप्त अभिलेख से वि० सं० १२७४ में जालोर में धनदेव तथा उसके परिवार के लोगों द्वारा पार्श्वनाथ की प्रतिमा स्थापित की जाने की जानकारी मिलती है। ७९
उपर्युक्त सभी मन्दिर अलाउद्दीन खिलजी के जालोर आक्रमण के समय नष्ट हो गये थे। उन मन्दिरों की कुछ सामग्री और अभिलेख आज भी तोपखाना की इमारत में सुरक्षित हैं। शेष बचे हुए मन्दिरों की मरम्मत स्वामीदास तथा जयमल्ल मुंणोत ने करवायी थी । 'जालोर चैत्य परिपाटी' में वहाँ बचे हुए ५ मन्दिरों का विवरण मिलता है । जालोर के पतन के बाद वहां पर कई मन्दिर नये सिरे से बने हैं। आजकल वहां
महावीर स्वामी का मन्दिर गगनचुम्बी मन्दिरों में से एक है। गौड़ी पार्श्वनाथ जिनालय तो वि० सं० १८६३ में वेद मूथा लक्ष्मीचन्द ने बनवाया। इसकी प्रतिष्ठा खरतरगच्छ आचार्य जिनहर्षसूर ने की। संवत् १९३३ में इस मन्दिर का जीर्णोद्धार किया गया। यह कार्य विजय राजेन्द्रसूरि के निर्देश पर सम्पन्न हुआ। इसमें ऋषभनाथ की प्रतिमा भी स्थापित की गई । ८° जालोर के जैन स्मारकों में वहाँ की दादावाड़ी, भाण्डवाजी, दुर्ग में स्थित ३ जैन मन्दिर विशेष रूप से उल्लेखनीय हैं। जैन मन्दिरों में पार्श्वनाथ मन्दिर तथा चौमुखा मन्दिर भी दर्शनीय हैं। '
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सम्भवतः जालोर में प्राचीन जैन मन्दिर मारु - गुर्जर शैली के थे। शेष बचे हुए मन्दिर नागर शैली के ही हैं। इनमें अलङ्कारिता, सहजता, लालित्य स्पष्टतया दृष्टिगोचर होती है।
जालोर क्षेत्र में स्थित सत्यपुर (सांचोर) भी जैन धर्म का प्रसिद्ध केन्द्र रहा है। १३१० ई० में अलाउद्दीन खिलजी ने सिवाना एवं जालोर अभियान के दौरान यहां पर स्थित महावीर मन्दिर को नष्ट कर दिया। इससे पूर्व यहां महमूद गजनवी तथा गुलामवंशीय शासकों के आक्रमण हो चुके थे। धनपाल ने यहां की महावीर प्रतिमा की छवि निहारते हुए अपभ्रंश भाषा में सत्यपुरमहावीरउत्साह नामक कृति की रचना की थी। मिश्र धातु से निर्मित यहां की महावीर प्रतिमा अत्यन्त सुन्दर थी । ८२ अब यह मन्दिर विद्यमान नहीं है, किन्तु इससे सम्बन्धित कई शिलालेख प्राप्त हुए हैं। गुर्जर राज्य के मन्त्री अल्हड़ ने तो इस मन्दिर में पार्श्वनाथ प्रतिमा स्थापित की थी। बाद में प्रद्युम्न सूरि के निर्देशन पर इस मन्दिर की मरम्मत की गई। आजकल इस मन्दिर की प्रतिमाएँ अचलगढ़ में सुरक्षित हैं । ८३
जालोर से १९ किलोमीटर की दूरी पर स्थित आहोर में सात जैन मन्दिर हैं, जिनमें से गुरुजी का मन्दिर अधिक प्रसिद्ध है । ८४
जालोर का सांस्कृतिक पड़ोसी नगर भीनमाल है । ८५ यहां पर स्थित बुधावास का महावीर मन्दिर यथेष्ट प्राचीन है। धनपाल ने इसका उल्लेख किया है । चचिग देव
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