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९. जालोर का शिलालेख ६१ संवत् १६८०- महाराजा गजसिंह के राज्यकाल में जालोर नगर के स्वर्णगिरि दुर्ग में मुंणोत गोत्र के जयमल्ल ने धर्मनाथ की प्रतिमा स्थापित की।
१०. जालोर का शिलालेख ६२ संवत् १६८३ - इसमें सूत्रधार उद्धारक तत्पुत्र तोडर और तपागच्छीय भट्टारक आचार्य श्री विजयदेवसूरि का उल्लेख है।
११. जालोर का शिलालेख ६३ संवत् १६८३ - इस लेख में मुंणोत गोत्र जयमल्ल की भार्या सरूपदे द्वारा पार्श्वनाथ बिम्ब समर्पित करने का उल्लेख मिलता है। जालोर का शिलालेख६४ संवत् १६८३
१२.
१३. जालोर का शिलालेख ६५ संवत् १६८४ - इस अभिलेख से ज्ञात होता है कि कुंथुनाथ की प्रतिमा की स्थापना तपागच्छ के भट्टारक आचार्य विजयदेवसूरि ने की।
१४. जालोर का शिलालेख ६६ (चौमुख जी का मन्दिर) संवत् १६८१- इस शिलालेख में मुंणोत सोहाग देवी द्वारा आदिनाथ की प्रतिमा स्थापित करने का वर्णन है।
१५. जालोर का शिलालेख६७ संवत् १६८६ - संस्कृत का यह लेख किसी मन्दिर से सम्बन्धित है।
(ब) रत्नपुर, हरजी एवं सांचौर के शिलालेख
जालोर के पास एक गांव है हरजी, वहाँ से ६ शिलालेख मिले हैं जो जैनधर्म से सम्बन्धित हैं। जिनपर संवत् १२३१, १५४५ तथा १५४७ उत्कीर्ण हैं । ६८
(१) सांचोर का शिलालेख संवत् १२२५ - इस अभिलेख से ज्ञात होता है कि भीमदेव के राज्यकाल में महावीर जिनालय की चतुष्किका की मरम्मत करवायी गई । ६९ इसकी संवत् १३२२ में पुन: मरम्मत की गई । वि० सं० १३३६ के अन्य शिलालेख से ज्ञात होता है कि उक्त महावीर मन्दिर मुस्लिम आक्रमण से नष्ट हो गया।' (२) रत्नपुर के शिलालेख - जसवन्तपुरा क्षेत्र में स्थित रत्नपुर का पार्श्वनाथ मन्दिर अत्यन्त प्रसिद्ध है। यहां से कई शिलालेख मिले हैं। संवत् १२०९ के शिलालेख में पशु हिंसा पर रोक लगाने का विवरण है । वि० सं० १२३८ में पार्श्वनाथ मन्दिर जीर्णोद्धार का और वि० सं० १३३८ के लेख में श्रेष्ठी डूंगरसिंह द्वारा प्रतिमा स्थापना का विवरण मिलता है । ७१ वि०सं० १२२३ के शिलालेख में यात्रा हेतु दो दुकानों का अनुदान देने, वि०सं० १३४८ के लेख में श्रेष्ठ मण्डलिक मदन द्वारा पुष्पाहार हेतु दो दुकानें दान में देने, वि०सं० १३४३ के लेख में आदिनाथ देवकुल हेतु पुष्पहार
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