________________
३४
आत्मवंचना, कूटनीति तथा धोखे का त्याग सत्यवचन से ही होता है। अतिचारों को दूर कर सत्य पालन किया जाय तो शेयर घोटाला तथा हवाला काण्ड, चारा काण्ड जैसी दुष्प्रवृत्तियाँ देश की नींव को हिला नहीं सकेंगी।
आज बढ़ती अपराधिक प्रवृत्तियों के मूल में लोभ प्रकृति प्रबल है। लोभ सभी पापों का जनक है। २८ लोभ के ही कारण मनुष्य चौर्यकर्म में प्रवृत्त होता है। लोभ ही परिग्रह का भी कारण है। मन, वचन और कर्म से किसी की सम्पत्ति बिना आज्ञा के न लेना और न देना अस्तेय या अचौर्य है। चोरी की प्रेरणा देना, समर्थन करना, चोरी की वस्तु खरीदना, राजाज्ञा का उल्लङ्घन, अनुचित रीति से धन ग्रहण करना, मिलावट करना, कम तौलना ये अस्तेयाणुव्रत के अतिचार हैं। २९ इस दृष्टि से वनों की अवैध कटाई, अभ्यारण्यों में वन्य पशुओं का शिकार, दूषित गैस उपकरणों एवं वाहनों का प्रयोग, रिश्वत लेना और देना स्तेय कर्म हैं। दहेज-दाह जैसे कुकृत्यों के पीछे क्रूर तरीके से धन हथियाना चौर्य कर्म और हिंसा है।
___ अचौर्य व्रत पालन से सामाजिक अधिकारों की रक्षा होती है। व्यक्ति, समाज तथा देश का आर्थिक पर्यावरण शुद्ध होता है। जैनाचार्यों ने परिग्रह के चौबीस भेद बताये हैं। इनके भोगोपभोग की इच्छा परिग्रह है और नि:स्पृहता अपरिग्रह। अधिक सवारी रखना, अनावश्यक वस्तुएँ एकत्र करना, दूसरों का वैभव देखकर आश्चर्य एवं लोभ करना और बहुत भार लादना परिग्रह परिमाण व्रत के राष हैं। लोभ के वशीभूत मानव परिग्रह संचय करता है। परिग्रह के संचय और रक्षा के लिये वह हिंसा, झूठ, चोरी और कुशील की ओर प्रवृत्त होता है। फलत: अशान्ति, असन्तोष व तनाव का जन्म होता है। परिग्रह परिमाण व्रत का पालन करने से आवश्यकताएँ सीमित, तृष्णा और कामनाएँ नियन्त्रित होती हैं। फलत: प्राकृतिक संसाधनों की बचत होती है। भ्रष्टाचार, जमाखोरी, वर्गसंघर्ष, साम्राज्यवाद और पूँजी की आसुरी लीलाओं का त्याग अपरिग्रह से ही हो सकता है। इससे न केवल मनुष्य और समाज अपितु विविध देश भी युर की सम्भावनाओं को समाप्त कर परमाणु विस्फोटों से पर्यावरण की रक्षा कर सकते हैं।
पर्यावरण असन्तुलन का सबसे बड़ा कारण मानव और उसकी बढ़ती हुई संख्या है। जनसंख्या नियन्त्रण के लिये ब्रह्मचर्य व्रत सार्थक है। यह व्रत जीवन को मर्यादित एवं मैथुन सेवन को नियन्त्रित करता है। यह व्रत श्रावक के लिये स्वदार सन्तोष तथा श्रमण के लिये पूर्ण ब्रह्मचर्य का निर्देश करता है। परविवाहकरण, अनंग क्रीड़ा, अपशब्द बोलना, विषय सेवन की तीव्र इच्छा तथा व्यभिचारिणी स्त्री के घर आना-जाना ये इस व्रत के व्यतिक्रम हैं। ३२ इस व्रत का पालन न करने से सामाजिक प्रदूषण फैलता है। इसका ज्वलन्त उदाहरण आर्थिक दृष्टि से समृद्ध भोगवाद के चरम बिन्दु पर पहुंचा अमेरिका का असन्तुलित सामाजिक जीवन है जहाँ प्रति तीन में से एक नारी को जीवन
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org