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(९) जातियों का इतिहास- जैन आचार्यों के उपदेशों से प्रभावित होकर समय-समय पर कई जातियों ने जैन धर्म को अपना लिया। इन जातियों का इतिहास जानना जरूरी है, जिनसे विभिन्न जातियों के प्रसिद्ध जैन श्रावकों की जानकारी उपलब्ध हो सकेगी। जैसे श्रीमाल या पोरवाल जाति का जन्म श्रीमाल में हुआ। इस जाति का जैनीकरण कैसे हुआ और इसमें कौन-कौन से प्रमुख व्यक्तित्व हुए, उनके सम्बन्ध में जानकारी जातियों के इतिहास के अध्ययन से मिलती है। जयमल्ल के सम्बन्ध में मुंणोत जाति के इतिहास का अध्ययन करने से और यशोवीर के बारे में श्री श्रीमाल जाति के इतिहास का अवलोकन करने पर उपयोगी जानकारी मिल सकती है।
(१०) पुराण ग्रन्थ- श्रीमालपुराण संस्कृत का एक प्रसिद्ध ग्रन्थ है जो स्कन्दपुराण के ब्रह्म विभाग का ही अंग है। इसमें श्रीमाल नगर के तीर्थों, भौगोलिक स्थिति और वहां निवास करने वाली जातियों का उल्लेख मिलता है। इस ग्रन्थ की एक प्रति प्राच्य विद्या प्रतिष्ठान, जोधपुर में संरक्षित है। इसका रचनाकार कौन था, यह ज्ञात नहीं है। यह ग्रन्थ लगभग १५-१६वीं शताब्दी ईस्वी का है। इसमें घटनाओं का विवरण १२ वीं शताब्दी से मिलता है। इस ग्रन्थ में लक्ष्मी कहती हैं कि जैन धर्मावलम्बी श्रीमाल माहात्म्य का विरोध न करें। श्रीमालपुराण में गौतम गणधर द्वारा जैन धर्म अपनाने के पश्चात् जिन ग्रन्थों की रचना की, उनका विवरण मिलता है। यह ग्रन्थ तपागच्छ सहित ८४ गच्छों का उल्लेख करता है। यह पुराण ओसवालों की उत्पत्ति और श्रीमाल गोत्र पर भी प्रकाश डालता है।४२
(११) ग्रन्थ भण्डार- जालोर मण्डल में कई ग्रन्थ भण्डार हैं जिनमें बड़ी संख्या में जैन ग्रन्थ सुरक्षित हैं। इसमें आहोर का राजेन्द्रसूरि शास्त्रभण्डार प्रसिद्ध है। जालोर में मुनि कल्याणविजय शास्त्रसंग्रह और मुनि केसरविजय पुस्तकालय में हजारों जैन धर्म सम्बन्धी ग्रन्थ संगृहीत हैं। इनमें से कई शास्त्र भण्डार अब बन्द पड़े हैं। कई ग्रन्थ भण्डारों का पुस्तक संग्रह गुजरात-अहमदाबाद में स्थानान्तरित कर दिया गया है। इन जैन ग्रन्थों में अनेक हस्तलिखित ग्रन्थ, भोजपत्रों एवं ताड़पत्रों पर भी लिखे हुए थे।४३ राजस्थान प्राच्य विद्या प्रतिष्ठान, जोधपुर में जालोर, भीनमाल, सांचोर, तखतगढ़ में रचे गये ग्रन्थों की मूलप्रतियां संरक्षित हैं। साहित्यिक ग्रन्थ
११वीं शताब्दी में महाकवि धनपाल ने कादम्बरी के समकक्ष तिलकमञ्जरी (संस्कृत) तथा अपभ्रंश में सत्यपुरीयमहावीरउत्साह की रचना की। इसमें कवि ने सांचोर का अपभ्रंश में सच्चपुरी और संस्कृत में सत्यपुर नाम दिया है। इस ग्रन्थ में सांचोर के महावीर मन्दिर की प्रतिमा के चमत्कारों का वर्णन है। इसमें महमूद गजनवी द्वारा जो जैन तीर्थ नष्ट किये गये थे, उनका उल्लेख मिलता है।४४ इससे ज्ञात होता
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