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भीनमाल में कई मन्दिर हैं जिनमें पार्श्वनाथ का मन्दिर बड़ा चमत्कारिक है। तीर्थमाला (पुण्यकलश) और तीर्थमाला स्तवन (शील विजय) के अनुसार • गजनीखां इस मन्दिर की प्रतिमा को तोड़ना चाहता था परन्तु वह आश्चर्यजनक रूप से बीमार हो गया। इसलिये उसने अपना विचार त्याग कर यह प्रतिमा वीरचन्द मूथा को सौंप दी, जिसने पार्श्वनाथ मन्दिर का पुनः जीर्णोद्धार करवाया। ३७ १६०५ ई० में पुण्य कमल ने पार्श्वनाथस्तवन रचकर जैन तीर्थङ्कर के प्रति श्रद्धासुमन अर्पित किये। ३८ जालोर मण्डल में जैन धर्म के अध्ययन स्त्रोत १. साहित्यिक स्रोत
(१) पट्टावलियाँ - जालोर क्षेत्र में जिनदत्तसूरि के प्रयासों के कारण खरतरगच्छ लोकप्रिय था। अत: जैनधर्म के अध्ययन की दृष्टि से खरतरगच्छपट्टावली, खरतरगच्छ बृहद्गुर्वावली (जिनपाल) का अध्ययन विशेष उपयोगी है। जैन धर्म के आचार्यों के जीवन के प्रमुख घटनाओं की जानकारी पट्टावलियों से प्राप्त होती है। विभिन्न गच्छों की पट्टावलियां भी इस दृष्टि से उपयोगी हैं।
(२) वंशावलियाँ- जैन समाज के विभिन्न गोत्रों की वंशावलियाँ जैन धर्म का अध्ययन करने में सहायक हो सकती हैं। विशेष रूप से जालोर मण्डल की जातियों की वंशावलियां इस सम्बन्ध में उपयोगी हैं। भीनमाल में श्रीमाल और पोरवाल आदि जातियों का जन्म हुआ। इसलिये वैश्य वर्ग की जातियों की वंशावलियों का अध्ययन भी अति आवश्यक है।
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(३) विज्ञप्तिपत्र - विज्ञप्तिपत्र मध्यकाल में जैन संघों द्वारा प्रतिष्ठित आचार्यों को अपने गांव या नगर में चातुर्मास करने के निमन्त्रण के सन्दर्भ में लिखे जाते थे। विज्ञप्ति पत्र दो प्रकार के होते थे, चित्रित और अचत्रित । अचित्रित विज्ञप्ति पत्र में निमन्त्रणपत्र के अलावा आचार्य वन्दना लिखी जाती थी । चित्रित विज्ञप्तिपत्र कागज पर जो लगभग १.५० डेढ़ फुट चौड़ा और २०-२५ फीट लम्बा होता था, लिखे जाते थे। इस कागज के पीछे कपड़ा लगा होता था । लेखन के पश्चात् विज्ञप्तिपत्र कलैण्डर की तरह समेट दिया जाता था । इस विज्ञप्तिपत्रों पर कई रंगों में चित्र बने हुए होते थे जिसमें आचार्य जहाँ से प्रस्थान करेंगे वहां से लेकर मार्ग में पड़ने वाले मुख्य स्थानों के चित्र, चातुर्मास स्थल का चित्र, वहां के मार्ग, मन्दिर और व्यवसाय आदि से सम्बन्धित चित्र होते थे । निमन्त्रित आचार्य को जो सन्देश भेजा जाता था उसमें गद्य-पद्य, छन्द में गुरु-वन्दना और प्रेषक का नाम होता था । इस प्रकार ये विज्ञप्तिपत्र राजस्थान में जैन धर्म, चित्रकला, वेश-भूषा और साहित्यिक विकास के अध्ययन के सम्बन्ध में अत्यन्त उपयोगी हैं। राजस्थान प्राच्य विद्या प्रतिष्ठान, जोधपुर में विभिन्न विज्ञप्तिपत्र संग्रहीत हैं। एक विज्ञप्तिपत्र, जो पाटण से जोधपुर भेजा गया था, उससे दोनों नगरों
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