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ने ब्रह्मस्फोटसिद्धान्त नामक ग्रन्थ की रचना की तब यहां पर व्याघ्रमुख का शासन था । | २५ चीनी यात्री युवानच्वांग ने ६४१ ई. में पी-लो-मो-लो की यात्रा की तब भीनमाल गुर्जर राज्य की राजधानी थी । २६ यद्यपि कुछ विद्वानों ने भीनमाल को पी-लो-मो-लो से अभिन्न मानने में प्रति शंका प्रकट की है। यहाँ के वर्मलाट तथा व्याघ्रमुख अवश्य ही चाप वंशीय शासक रहे होंगे। भीनमाल को अरबों से भी संघर्ष करना पड़ा था। १०वीं शताब्दी में परमार मुञ्ज द्वारा चाहमानों (नाडोल) को पराजित करने के बाद भीनमाल परमार राज्य का अंग बन गया। २७ बाद में इसे परमार दूसल को प्रदान कर दिया गया। भीनमाल पर चौहानों और चौलुक्यों का भी शासन रहा । सुन्धा अभिलेख से ज्ञात होता है कि १३ वीं शताब्दी में जालोर - भीनमाल क्षेत्र पर चाहमान उदयसिंह का अधिकार था । | २८ अलाउद्दीन खिलजी ने अपने जालोर अभियान के दौरान भीनमाल को भी नष्टप्राय कर दिया । २९ बाद में यहां पर पठानों का अधिकार हो गया । १८ वीं शताब्दी में यहां राठौड़ों ने अपना अधिकार स्थापित कर लिया । ३
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जैन धर्म के केन्द्र के रूप में भीनमाल, सम्राट् हर्ष के समय तक अधिक लोकप्रिय न था। चीनी यात्री युवान च्वांग ने जब यहां की यात्रा की तब यहाँ एक बौद्ध मठसर्वास्तिवादियों का था, जिसमें १०० बौद्ध भिक्षु रहते थे। चीनी यात्री ने स्वीकार किया है कि यहां पर ब्राह्मण धर्म का प्रभाव अधिक रहा । ३१ ब्राह्मण धर्म का प्रभाव क्षेत्र होने पर भी जैन धर्म के प्रसार हेतु भीनमाल उर्वरा भू-भाग था क्योंकि बौद्धधर्म के प्रचार ने यहां का वातावरण श्रमण परम्परा से आच्छादित कर दिया था। इस प्रकार सातवीं शताब्दी में जैन धर्म के प्रचार हेतु मञ्च पूर्व में ही निर्मित हो चुका था। जैन आचार्यों के प्रभाव में आकर लोग जैन धर्म की दीक्षा लेने लगे। जैन समाज की श्रीमाल एवं पोरवाल शाखा का उदय भीनमाल में ही हुआ था ।
जैन परम्परा के अनुसार विक्रम संवत् की प्रथम शताब्दी में वज्रस्वामी ने इस नगर में विहार किया था । | ३२ आचार्य सिद्धसेनसूरि ने सकलतीर्थस्तोत्र में भीनमाल को जैन धर्म भूमि कह कर पुकारा है । ३३ उत्तरकालीन परम्परानुसार स्वयं महावीर स्वामी भी भीनमाल आये थे। श्रमण महावीर ब्राह्मणवाड़, सिरोही से आबू होते हुए भीनमाल आये और वहां से गुजरात हेतु प्रस्थान किया । ३४ उपकेशगच्छ की उत्तरकालीन मान्यतानुसार वि०सं० ७९५ में भीनमाल के २४ ब्राह्मणों ने आचार्य उदयभद्र सूरि से प्रतिबोध प्राप्त कर जैनधर्म अपना लिया। ये ब्राह्मण ही आगे चलकर सेठिया कहलाये । | ३५ इन्होंने भीनमल में कई जिनालय बनवाये ।
कुवलयमाला की प्रशस्ति के अनुसार सातवीं शताब्दी में शिवचन्द्रगणि जिन वन्दन करने हेतु स्वयं भीनमाल आये थे। उनके शिष्य यक्षमहत्तर ने यहाँ पर जैन मन्दिर बनवाया था । आठवीं शताब्दी में भीनमाल के राजा भाण का उल्लेख मिलता है।
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