________________
ही एक दूसरे के रक्षक हैं। वृक्ष हमें न केवल शुद्ध वायु, जल, फलादि प्रदान करते हैं अपितु भूमि, वायु और ध्वनि प्रदूषण से भी हमारी रक्षा करते हैं। उदाहरणार्थ भोपाल गैस त्रासदी के समय बड़, पीपल, इमली और अशोक जैसे वृक्षों के पत्ते जल गये थे। उन वृक्षों के समीपस्थ निवासरत व्यक्तियों पर विषैली गैस का प्रभाव अपेक्षाकृत कम हुआ था। निश्चय ही विषैली गैस को वृक्षों ने पहले सहन किया था। बाढ़, अकाल जैसे प्राकृतिक प्रकोप तथा कल-कारखानों, वाहनों एवं आधुनिक उपकरणों से निकले धुएँ जैसे मानव निर्मित प्रकोपों से भी ये वृक्ष पशु-पक्षी सभी की रक्षा करते हैं। स्कॉटलैण्ड के वनस्पति वैज्ञानिक राबर्ट चेम्बर्स का मत है कि वनों का विनाश करने वाले अतिवृष्टि, अनावृष्टि, गर्मी, अकाल और बीमारी को आमन्त्रित कर रहे हैं।
जैन वाङ्मय में अनेक स्थलों पर वृक्ष-वनस्पतियों के महत्व का स्वर मुखरित होता है पद्मपुराण में वृक्षारोपण को प्रतिष्ठा का विषय कहा गया
प्रतिष्ठां ते गमिष्यन्ति यैः वृक्षाः समारोपिताः। वराङ्गचरित एवं धर्मशर्माभ्युदय में वनों, उद्यानों, वाटिकाओं११ तथा नदी के तीरों१२ पर वृक्षारोपण का वर्णन है। तीर्थंकर की प्रतिमाओं पर अंकित चिह्न भी पर्यावरण संरक्षण के प्रतीक हैं। प्राणी जगत् से सम्बद्ध बैल, हाथी, घोड़ा, वानर, हिरण एवं बकरा मानव के लिये सहयोगी एवं उपयोगी रहे हैं। चकवा पक्षी समूह तथा 'कल्पवृक्ष' वनस्पतिजगत् का प्रतीक है। जलचर- मगर, मछली और कछुआ जलशुद्धि हेतु उपयोगी जीव हैं। लाल और नील कमल अपने सौन्दर्य और सौकुमार्य से शान्ति और प्रेम का सन्देश देते हैं।
तीर्थंकरों के जन्म से पूर्व उनकी माताओं द्वारा देखे गये सोलह स्वप्न भी पशु जगत् एवं प्राकृतिक जगत् से सम्बद्ध, मंगल और क्षेत्र के प्रतीक हैं। १३
तीर्थंकर की समवशरण सभा में भी प्रमद वन, अशोक, सप्तपर्ण, चम्पक, आम्र वृक्षों का वर्णन है।१४ साथ ही प्रत्येक जीव का स्थान निर्धारित है तथा सभी को तीर्थकर वाणी सुनने का समान अधिकार है।
प्राणी जगत् प्रकृति की सृष्टि है और मानव के लिये वरदान भी। गो-प्रभृति जीव न केवल दुग्ध, अपितु मलमूत्रादि के रूप में ईधन, खाद, गैस और ऊर्जा भी प्रदान करते हैं। सर्प जैसा विषैला प्राणी फसल नष्ट करने वाले कीटों को खाकर उसकी सुरक्षा तथा केंचुआ जैसा क्षुद्र प्राणी मिट्टी को उर्वरा बनाता है। मछलियाँ जल को शुद्ध करती हैं।
__इस प्रकार पर्यावरण रक्षण में प्रत्येक प्राणी की अहम् भूमिका है। वराङ्गचरित, पद्यानन्दमहाकाव्य, धर्मशर्माभ्युदय और चन्द्रप्रभचरित प्रभृति महाकाव्यों में गाय,
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org