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श्रीमद्भागवत की स्तुतियों का समीक्षात्मक अध्ययन
द्वादश स्कन्ध में साक्षात् उमा-शिव को देखकर बालर्षि मार्कण्डेय इस प्रकार स्तुति करते हैं
नमः शिवाय शान्ताय सत्त्वाय प्रमृडाय च ।
रजोजुषेऽप्यघोराय नमस्तुभ्यं तमोजुषे ।' कौरवगण, चित्रकेतु, नारद तथा यमुना आदि भक्त विभिन्न स्थलों पर संकर्षण देव की स्तुति करते हैं। जब क्रोधाभिभूत बलरामजी कौरवों की नगरी हस्तिनापुर को हल से खींचकर गंगा की ओर ले जाने लगे तब डरकर कौरवों ने बलराम की उपासना की
राम रामाखिलाधार प्रभावं न विदाम ते ।
मूढानां नः कुबुद्धीनां क्षन्तुमर्हस्थतिक्रमम् ॥ २. कामना की दृष्टि से स्तुतियों का वर्गीकरण
कामना की दष्टि से स्तुतियों के दो भेद होते हैं--निष्काम और सकाम । निष्काम स्तुतियों में किसी प्रकार की सांसारिक कामना नहीं होती है। इस प्रकार की स्तुतियां केवल प्रभु के नाम, गुण, लीला आदि के प्रतिपादक तथा उन्हीं के चरणों में समर्पित होती है। ऐसी स्तुतियों में भक्त मुक्ति और आत्मसाक्षात्कार का भी निषेध करते हैं हमें सत्संग, लीला के श्रवण-कीर्तन और भक्त के चरित्र में इतना आनन्द आता है कि उतना स्वरूप स्थिति में भी नहीं आता। हमें हजारों कान दो, जिससे हम तुम्हारी कथा का श्रवण कर सकें
न कामये नाथ तदप्यहं क्वचिद् न यत्र युष्मच्चरणाम्बुजासकः। महत्तमान्तर्ह दयान्मुखच्युतो विधत्स्व कर्णायुतमेष में वरः ॥
इन सभी स्तुतियों से आत्मशुद्धि होती है, भगवत्तत्त्व का ज्ञान होता है, साधन में और भगवान् के स्वरूप में निष्ठा होती है। ऐसी स्तुतियों को दो भागों में रख सकते हैं
(१) तत्त्वज्ञान प्रधान स्तुतियां (२) साधन प्रधान स्तुतियां।
तत्त्वज्ञान प्रधान स्तुतियों में तत्त्ववर्णन की ही प्रमुखता होती है । तत्त्ववर्णन प्रधान स्तुतियां सारे जगत् का, वाणी का, विचारों का, स्तुति करने वालों का, भगवान् में पर्यवसान करके स्वयं भी उसी में पर्यवसित हो जाती हैं । स्तुतियां उस प्रभु के गुणों का वर्णन करते समय परमात्मा के अतिरिक्त वस्तुओं का निषेध करते-करते अन्त में अपना भी निषेध कर प्रभु १. श्रीमद्भागवत १२.१०.१७ २. तत्रैव १०.६८.४४ ३. तत्रैव ८.२०.२८
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