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भागवत की स्तुतियां : स्रोत, वर्गीकरण एवं वस्तु वर्गीकरण
दिदृक्षवो यस्य पदं सुमङ्गलं विमुक्तसङ्गा मुनयः सुसाधवः । चरन्त्यलोकव्रतमवणं वने भूतात्मभूताः सुहृदः स मे गतिः ॥
यमुना जल को विषाक्त करने वाले कालिय-नाग का जब प्रभु मर्दन करने लगे तब नाग पत्नियों ने अपने सुहाग की याचना की-शान्तात्मन् ! स्वामी को एक बार अपनी प्रजा का अपराध सह लेना चाहिए । यह मूढ़ है, आपको पहचानता नहीं, इसलिए आप इसको क्षमा कर दीजिए। अबलाओं पर दया कीजिए हमारे प्राण स्वरूप पति को छोड़ दीजिए। गोपियों के गर्वभंजन के लिए भक्ताहभजक भगवान् कृष्ण अन्तर्धान हो गये। रूप गविता गोपियों को जब यह भाण हुआ तो व्याकुल होकर भगवान् की स्तुति करने लगी
जयति तेऽधिकं जन्मनावजः श्रयत इन्दिरा शश्वदत्र हि।
दयित दृश्यतां दिशु तावकाः त्वयि धृतासवस्त्वां विचिन्वते ॥' ६. समय के आधार पर-इस संवर्ग में स्तुतियों का त्रिविधा वर्गीकरण किया गया है
दुःखावसान होने पर, सुखावसान होने पर एवं प्राण प्रयाणावसर पर की गई स्तुतियां । (क) दुखावसान होने पर की गई स्तुतियां
दुःख के अन्त होने पर की जाने वाली स्तुतियों की बहुलता है । प्रभु की दया एवं उनकी भक्तवत्सलता से भक्त गम्भीर कष्ट से मुक्त हो जाता है, तब उसके मुख से अनायास अपने प्रभु के चरणों में हृदय के भाव समर्पित हो जाते हैं । दुःखावसान होने पर राजरानी कुन्ती अपने सम्बन्धी, सर्वलोकनियामक पद्मनाभ की स्तुति करती है-हे प्रभो ! आपने बार-बार कष्टों से उबारा है
विषान्महाग्नेः पुरुषाददर्शनादसत्सभाया वनवासकृच्छतः। मृधे-मृधेऽनेकमहारथास्रतो द्रौण्यस्त्रतश्चास्म हरेऽभिरक्षिताः ॥
___ इसी प्रकार अन्य भक्त भी दुःखावसान होने पर प्रभु की उपासना करते हैं - देवगण (३।१९) मरीच्यादि (३।१३), सनकादि (३।१६) भगवान् वाराह की, सत्यव्रत (४।२४) भगवान् मत्स्य की, देवकी वसुदेव (१०।१३), नलकुबरमणिग्रीव (१०।१०) कामधेनु (१०।२७), राजागण (१०।७३), आदि १. श्रीमद्भागवत ८।३७ २. तत्र व १०।१६।५१-५२ ३. तत्र व १०१३।१ ४. तत्रैव १।८।२४
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