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श्रीमद्भागवत की स्तुतियों में अलंकार
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अधिकांश मात्रा में भगवद्विशेषणों में प्राप्त होते हैं। भगवान् श्रीकृष्ण को कमलनयन, पद्मनाभ, पङ्कजाङिघ्र इत्यादि विशेषणों में कमल के वर्णन से ही प्रमाता की चेतना में कमल जन्य स्पर्शानुभूति होने लगती है।
श्रीमद्भागवत में दोनों प्रकार के स्पर्शबिंब प्राप्त होते हैं । अग्नि की दाहकता, जल की शीतलता, इत्यादि की अनुभूति स्पर्श का ही विषय है। अश्वत्थामा विजित ब्रह्मास्त्र की दाहकता से अर्जुन एवं उत्तरा का शरीर जलने लगा। ऐसे वर्णनों से प्रमाता की चेतना में दाहकता की स्पर्शानुभूति होने लगती है। कुन्ती द्वारा वर्णित स्तुति में लाक्षागृह की भयंकर अग्नि का ताप स्पर्श बिम्ब उत्पन्न करता है ।' सुदर्शन के तीव्र आतप से दुर्वासा का शरीर जलने लगा, भाग पड़े दुर्वासा----प्राणों की रक्षा के लिए-कौन बचावे उन्हें---पुनः भक्त अम्बरीष के शरण प्रपन्न हुए। यहां सुदर्शन से प्रमाता के हृदय में स्पर्श-जन्य गम्भीर आतप की अनुभूति होने लगती है। सूर्य के ताप और अग्नि की दाहकता की एकत्र अनुभूति प्रस्तुत श्लोक में द्रष्टव्य है
त्वमग्निर्भगवान सूर्यस्त्वं सोमो ज्योतिषां पतिः ।
त्वमापस्त्वं क्षितियोम वायुर्मात्रेन्द्रियाणि च ॥
इस श्लोक में सूर्य के आतप, चन्द्रमा की चांदनी की स्निग्धता एवं जल की शीतलता की स्पर्श जन्य अनुभूति होती है।
बाण-वेधन से जन्य वेदना की स्पर्शानुभूति भीष्मकृत स्तुति में होती है। ममनिशितशरविभिद्यमानत्वचि विलसत्कवचेऽस्तु कृष्ण आत्मा ॥
भगवान श्रीकृष्ण के स्पर्श से गोपियों के शरीर में रोमांच, राजा नग की मुक्ति, कुब्जा का उद्धार आदि की कहानी प्रसिद्ध है। गन्ध बिम्ब
घ्राणेन्द्रियग्राह्य विषयों को गन्ध-बिम्ब की कोटि में रखा जाता है । सृष्टि के समस्त पदार्थ गन्ध से युक्त होते हैं लेकिन हमारी घ्राणेन्द्रिय कुछ ही पदार्थों के गंध को ग्रहण कर पाती है। ये गंध दो प्रकार के सामान्य व्यवहार में प्रचलित हैं-सुगन्ध और दुर्गन्ध । सुगन्ध से घ्राणेन्द्रिय तृप्त और मन प्रसन्न हो जाता है। दुर्गन्ध से घ्राणेन्द्रिय अतृप्त एवं मन खिन्न हो जाता है। मनुष्य सुगन्ध की ओर आकृष्ट होता है लेकिन दुर्गन्ध की ओर से पलायित होना चाहता है। गन्ध अनुभूति सिद्ध है, शब्दों के द्वारा १. श्रीमद्भागवत १.८.२४ २. तत्रव ९.५.३ ३. तत्रैव १.९.३४
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