Book Title: Shrimad Bhagawat ki Stutiyo ka Adhyayana
Author(s): Harishankar Pandey
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 252
________________ २२६ श्रीमद्भागवत की स्तुतियों का समीक्षात्मक अध्ययन कांपने लगा । कोई भी उनके क्रोध को शमित करने में समर्थ नहीं हुआ तब बालक प्रह्लाद हाथ जोड़कर भगवान् की स्तुति करने लगा । " इस प्रसंग में नृसिंह के हुंकार तथा बालक प्रह्लाद की तोतली बोली से ध्वनि बिम्ब का निर्माण होता है । मत्स्यावतार में मत्स्य की ध्वनि, वाराहवतार में वाराह की ध्वनि कच्छपावतार में कच्छप की ध्वनि बिम्बित होती है । बालक श्रीकृष्ण के बाललीलाओं में हंसना, रोना, किलकारी करना इत्यादि भी शब्द बिम्ब के अन्तर्गत ही आते हैं । बालक श्रीकृष्ण के पैरों में सुशोभित पायलों की झनकार तथा कंगणों के खनखनाहट मनोज्ञ शब्द बिम्ब प्रकट करते हैं । इस प्रकार श्रीमदभागवत की स्तुतियों में तथा स्तुतियों के अतिरिक्त भी सुन्दर शब्द बिम्बों का विनियोजन हुआ है । संलिष्ट, एकल, गत्यात्मक, स्थिर आदि प्रकार के बिम्ब भी यहां प्राप्त होते हैं । ३. स्पर्श बिम्ब स्पर्श त्वचा का धर्म है। स्पर्श प्राप्त करके त्वचा में होने वाले संवेदनों के वर्णन से स्पर्श बिम्ब का सर्जन होता है । त्वचा के द्वारा बाह्य पदार्थों के संपर्क से होने वाली अनुभूति कोमल, कठोर एवं सामान्य होती है । वर्ण्यविषय में स्पर्श – जन्य संवेदन का वर्णन होने पर ही स्पर्श बिम्ब का निर्माण हो सकता है । वर्ण्य विषय का वर्णन चाहे वास्तविक हो या काल्पनिक, उसके लिए स्पर्शानुभूति आवश्यक है कोमल या कठोर स्पर्श जनित गुण के लिए विभिन्न प्रकार के पदार्थों के उल्लेख होते ही प्रमाता की चेतना में तत्सम्बन्धी स्पर्श - बिम्ब उभर आता है । यथा - चन्दन के वर्णन से ही उसकी शीतलता, स्निग्धता आदि गुणों की प्रमाता को अनुभूति होने लगती है । इसे ही स्पर्श बिम्ब कहते हैं । । स्पर्श बिम्ब को दो कोटियों में रख सकते हैं ( १ ) इस कोटि में वैसे स्पर्श बिम्बों का समावेश हो सकता है, जिसमें वर्ण्य विषय की स्पर्श किया एवं स्पर्श जन्य संवेदनशीलता- रोमांच, पुलक, शीतलता आदि की अभिव्यक्ति होती है । भगवान् श्रीकृष्ण के स्पर्श मात्र से ही गोपियों का पूरा शरीर रोमांच से युक्त हो जाता है । कुब्जा कामासक्त होती है । (२) जिनमें स्पर्श क्रिया का वर्णन न कर केवल स्पर्श गुण - कोमल, कठोर और उससे युक्त पदार्थ – फूल, रेशम, पाषाण का उल्लेख रहता है । और प्रमाता कल्पना द्वारा स्पर्शानुभूति करता है । इस कोटि के बिम्ब १. श्रीमद्भागवत १०.३.१० Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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