Book Title: Shrimad Bhagawat ki Stutiyo ka Adhyayana
Author(s): Harishankar Pandey
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 256
________________ २३० श्रीमद्भागवत की स्तुतियों का समीक्षात्मक अध्ययन स्थलों पर ऐसे बिम्ब अवश्यमेव प्राप्त होते हैं । प्रत्येक स्तुतियों में इस प्रकार के बिम्ब प्राप्त होते हैं त्वयि मेऽनन्यविषया मतिर्मधुपतेऽसकृत् । रतिमुद्वहतादद्वा गङ्गेौधमुदन्वति ॥ यहां पर गंगा की अखण्डधारा इस मूर्त पदार्थ के द्वारा भगद्विषयिणी अनन्या रति के वर्णन से प्रमाता की चेतना में भक्ति विषयक बिम्ब बन जाता है । इस प्रकार के बिम्बों के द्योतन के लिए भागवत में उपमा, रूपक, दृष्टान्त उत्प्रेक्षा आदि का सहारा लिया गया है targatha खलेन देवकी कंसेन रुद्धातिचिरं शुचापिता । विमोचिताहं च सहात्मजा विभो त्वयैव नाथेन मुहुविपद्गणात् ॥ ` यहां विपत्तियों का मूर्त चित्रण हुआ है । विष, अग्नि, दाह, राक्षसों की दृष्टि, दुष्टों की द्यूतसभा आदि विपत्तियों का बिम्ब प्रमाता की चेतना में उजागर हो जाता है । कुन्ती द्वारा याचित हजारों विपत्तियों का प्रमाता के मन में मूर्त्तिकरण हो जाता है ।" अविन्यस्त श्लोक में भय, दुःख, शोक, स्पृहा लोभ आदि मानसिक भावों का प्रमाता के मन में प्रतिबिम्बन होता है तावद्भयं द्रविणगेहसुहृन्निमितं शोकः स्पृहा परिभवो विपुलश्च लोभः । तावन्ममेत्यसदवग्रह आतिमूलं यावन्न तेऽङ घ्रिमभयं प्रवृणीत लोकः ॥ यहां ब्रह्माजी द्वारा कृतस्तुति में अनेक भाव बिम्बों का समावेश 1 यहां भूख, प्यास, वात, पित्त आदि कष्टों का मूर्त बिम्बन प्राप्त क्षुत्तृ त्रिधातुभिरिमा मुहुरर्द्धमानाः शीतोष्णवातवर्षे रितरेतराच्च । कामाग्निनाच्युत रुषा च सुदुर्भरेण सम्पश्यतो मन उरुक्रम सीदते मे ॥' ५ जीवों के प्रति समदर्शिता का भाव आत्मा का विषय होने से भाव बिम्ब के अन्तर्गत आता है । श्रीमद्भागवत में इस तरह के भावबिम्ब अनेकत्र स्थलों पर प्राप्त होते हैं । जो सब कुछ समर्पित कर प्रभु का हो जाता है वह समस्त प्राणियों में एकत्व का दर्शन करने लगता है । उसमें समता का भाव जागरित हो जाता है १. श्रीमद्भागवत १.८.४२ २. तत्रैव १.८.२३ ३. तत्रैव १.८.२५ ४. तत्रैव ३.९.६ ५. तत्रैव ३.९.८ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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