Book Title: Shrimad Bhagawat ki Stutiyo ka Adhyayana
Author(s): Harishankar Pandey
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 274
________________ २४८ श्रीमद्भागवत की स्तुतियों का समीक्षात्मक अध्ययन का प्रयोग होता है । संस्कृत वाङ् मय में यह छन्द इतना अधिक लोकप्रिय है कि सभी कवियों ने विषय एवं भावों के प्रतिपादन में अनुष्टुप् का सहारा लिया है । सर्वप्रथम लोक में अनुष्टुप का ही अवतार माना जाता है । महर्षि वाल्मीकि ने हृदयगत शोक को अनुष्टुप् के माध्यम से ही अभिव्यक्त किया था । यह चार-चरण युक्त सम छन्द है । इसके सभी पादों में छठा अक्षर गुरु, पांचवां लघु होता है । सातवां अक्षर तथा चौथे चरण में ह्रस्व होता है, पहले और तीसरे में दीर्घ होता है । ' दूसरे भागवत की स्तुतियों में अनेक स्थलों पर इसका प्रयोग पाया जाता है । द्रोण्यास्त्र से भीत उत्तरा रक्षा के लिए कृष्ण का आह्वान अनुष्टुप् युग्मों से करती है पाहि पाहि महायोगिन्देवदेव जगत्पते । नान्यं त्वदमयं पश्ये यत्र मृत्युः पररूपरम् ॥ अभिद्रवति मामीश शरस्तप्तायसो विभो । कामं दहतु मां नाथ मा मे गर्भो निपात्यताम् ।। भक्तिमती कुन्ती अपनी स्तुति अनुष्टुप् से ही प्रारम्भ स्तुति में १९ बार अनुष्टुप् छन्द का प्रयोग किया गया है । के द्वारा कुन्ती अनन्यारति की कामना करती हैत्वयि मेऽनन्यविषया मतिर्मधुपतेऽसकृत् । रतिमुद्वहतादद्धा गङ्गेवौघमुदन्वति ॥' (२) पुष्पिताग्रा पुष्पिताग्रा का अर्थ है सफलता के लिए प्रयाण । यह चार चरणों से युक्त अर्धसमवृत्त है । प्रथम तथा तृतीय चरण में नगण, नगण, रगण एवं गण क्रम से १२ अक्षर और द्वितीय तथा चतुर्थ चरण में नगण, जगण, जगण, रगण और एक गुरुक्रम से १३ अक्षर होते हैं । श्रीमद्भागवत में अनेक स्थलों पर पुष्पिताग्रा छन्द का प्रयोग किया गया है । पितामह भीष्म की महाप्रयाणकालीन स्तुति पुष्पिताग्रा में निबद्ध है १. श्लोके षष्ठं गुरु ज्ञेयं सर्वत्र लघु पञ्चमम् । द्विचतुः पादयोर्हस्वं सप्तमं दीर्घमन्ययोः ॥ करती है । इस अन्तिम अनुष्टुप् २. श्रीमद्भागवत १.८.९-१० ३. तत्रैव १.८.४२ ४. अयुजि नयुगरेफतो यकारो युजि च न जौ जरगाश्च पुष्पिताग्रा । छन्दोमञ्जरी चौखम्बा सुरभारती ३।५ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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