Book Title: Shrimad Bhagawat ki Stutiyo ka Adhyayana
Author(s): Harishankar Pandey
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 285
________________ श्रीमद्भागवत की स्तुतियों में गीतितत्व, छन्द और भाषा २५९ से युक्त यह स्तोत्र प्रसाद एवं माधुर्य गुण से मण्डित है । लघु सामासिक पदों के प्रयोग से भाषा में स्वाभाविक रमणीयता विद्यमान है। इसका अंतिम श्लोक भक्ति शास्त्र की दृष्टि से अत्यन्त महनीय तो है ही साथ-साथ संसारिक जीवों के लिए प्रभु के मधुमय निकेतन में गमनार्थ सुदृढ़ पथ भी वाणी गुणानुकथने श्रवणौ कथायां हस्तौ च कर्मसु मनस्तव पादयोनः स्मृत्यां शिरस्तव निवासजगत्प्रणामे दृष्टिः सतां दर्शनेऽस्तु भवत्तनूनाम् ॥' ब्रह्माकृत श्रीकृष्ण स्तुति (१०.१४.१-४०) विपुलकाय स्तोत्र है। इसकी भाषा अत्यन्त प्रांजल एवं सहजग्राह्य तथा शब्द विन्यास अतिशय मनोरम है । परम-रमणीय लघु सामासिक पदावलियों का विनियोग हुआ है। श्रुतिमधुर शब्दों का चयन, उत्कृष्ट अलंकारों का प्रयोग एवं भव्य भावपूर्ण कल्पनाओं की सृष्टि, सभी हृदयावर्जक हैं। इसके बार-बार पारायण से हृदय में रस की सरिता प्रवाहित होने लगती है। प्रसिद्ध सूक्ति 'क्षणे क्षणे यन्नवता मुपेति तदेव रूपं रमणीयतायाः "का यह अद्भुत क्रीडा स्थल है। कोमलकान्त पदावलियों में संश्लिष्ट यह स्तुति मधुरिमा से परिप्लुत तो है ही "सद्यःपरनिर्वृति" में सक्षम एवं अतिशय समर्थ भी है। विविधालंकारों के प्रयोग से भाषिक सुन्दरता में संबृद्धि हो गयी है। ___रुद्रकृत श्रीकृष्णस्तुति (१०.६३.३४-४५) की भाषा श्रुतिमधुर एवं प्रांजल है । भगवान् श्रीकृष्ण के शौर्य, महिमा, पराक्रम तथा उनकी माया के प्रभाव का प्रतिपादन सुन्दर शब्दों में किया गया है। प्रसाद गुण का प्रभाव सर्वत्र परिलक्षित है । लघु सामासिक पदावलियों का प्रयोग किया गया है। जरासन्ध कारागार के बन्दी नृपतिगण जरासन्ध की क्रूरता से त्रस्त होकर अपनी रक्षा के लिए प्रभु श्रीकृष्ण से दूत के माध्यम से स्तुति (१०.७०.२५-३०) करते हैं । इस लघु कलेवरीय स्तोत्र में आर्तभाव की प्रधानता होने से भाषा में स्वाभाविक गतिशीलता आ गयी है । लघु सामासिक पदावलियों का उपयोग हुआ है। यह संपूर्ण स्तोत्र प्रसादगुण से संवलित श्रुतिमधुर शब्दावलियों में गुम्फित है। भगवान् श्रीकृष्ण की शरणागत वत्सलता का प्रतिपादक श्लोक भाषिक सौन्दर्य की दृष्टि में अत्यन्त रमणीय है तन्नो भवान् प्रणतशोकहरा घ्रियुग्मो बद्धान् वियुङ क्ष्व मगधाह्वयकर्मपाशात् । यो भूभुजोऽयुतमतङ गजवीर्यमेको बिभ्रद् रुरोध भवने मृगराडिवावी: ॥ १. श्रीमद्भागवत महापुराण १०.१०.३८ २. तत्रैव १०.७०.२९ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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