Book Title: Shrimad Bhagawat ki Stutiyo ka Adhyayana
Author(s): Harishankar Pandey
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 292
________________ २६६ श्रीमद्भागवत की स्तुतियों का समीक्षात्मक अध्ययन मन्दाक्रांता, शार्दूलविक्रीडित, स्रग्धरा, पुष्पिताग्रा आदि सुन्दर छन्दों का विनियोग हुआ है । गीतिकाव्य के प्रमुख तत्त्वों का समेकित रूप स्तुतियों में उपलब्ध होता है या यों कह सकते हैं कि स्तुतियां गीतिकाव्य के श्रेष्ठ उदाहरण हैं । भावना, कल्पना, लयात्मकता, चित्रोपमता, श्रुतिमधुरता, संगीतात्मकता, अन्तर्वृत्ति की प्रधानता, रसात्मकता, मार्मिकता, सहजता, स्वाभाविकअभिव्यंजना आदि गीतिकाव्य के सभी गुण स्तुतियों में उपलब्ध होते हैं । स्तुतियों की भाषा अत्यन्त सुन्दर, सरल, सहज एवं नैसर्गिक है । सम्प्रेषणीयता एवं स्वाभाविक अभिव्यक्ति पद-पद विद्यमान है । भक्त के शुद्ध एवं अकल्मष हृदय से निःसृत होने के कारण स्तुतियां आह्लादकता एवं रमणीयता से युक्त हैं | प्रसाद एवं माधुर्य गुण का सर्वत्र साम्राज्य स्थापित है । शब्दों की मनोरम शय्या है । सामासिक पदों का यत्किचित् प्रयोग मिलता है | श्रुतिमधुर शब्दों के प्रयोग से भाषिक चारुता में वृद्धि हो गयी है । इस प्रकार उसी की कृपा एवं निर्देश प्राप्त कर प्रस्तुत शोध प्रबन्ध में श्रीमद्भागवतमहापुराण के स्तुतियों का विविध दृष्टिकोणों से अध्ययन प्रस्तुत किया गया है । कहां तक सफलता मिली है, इसमें वही प्रमाण है । इसमें मेरा कहने का कुछ नहीं है । जो कुछ भी है, उसी का है । उसी का धन उसी को समर्पित कायेन वाचा मनसेन्द्रियैर्वा बुद्धयात्मना वानुसृतः स्वाभावात् । करोमि यत्तद् सकलं परस्मै नारायणायेतिसमयेत्तत् ॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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