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श्रीमद्भागवत की स्तुतियों का समीक्षात्मक अध्ययन
१. वंशस्थ+इन्द्रवज्रा २. वंशस्थ+इन्द्रवंशा ३. इन्द्रवज्रा+उपेन्द्रवज्रा १. वंशस्थ और इन्द्रवज्रा के योग से निष्पन्न उपजाति का उदाहरणअप्यद्य नस्त्वं स्वकृतेहित प्रभो जिहाससि स्वित्सुहृदोऽनुजीविनः। येषां न चान्यद्भवतः पदाम्बुजात् परायणं राजसु योजितांहसाम् ।। २. वंशस्थ और इन्द्रवंशा के योग से निष्पन्न उपजाति का उदाहरण
स वै किलायं पुरुषः पुरातनो य एक आसीदविशेष आत्मनि ।
अग्रे गुणेभ्यो जगदात्मनीश्वरे निमीलितात्मन्निशि सुप्तशक्तिषु ॥
३. इन्द्रवज्रा और उपेन्द्र वज्रा के योग से निष्पन्न उपजाति का उदाहरण-~--
नमाम ते देव पदारविन्दं प्रपन्नतापोपशमातपत्रम् ।
यन्मूलकेता यतयोञ्जसोरु संसारदुःखं बहित्क्षिपन्ति ।' ११. स्त्रग्विनी
यह समवृत्त छन्द है । प्रत्येक चरण में चार रगण के क्रम से १२ अक्षर होते हैं। श्रीमद्भागवतीय स्तुतियों में अनेक स्थलों पर यह छन्द प्राप्त होता है । यजमान पत्नी दक्ष यशशाला में उपस्थित भगवान् विष्णु की स्तुति कर रही है
स्वागतं ते प्रसीदेश तुभ्यं नमः श्रीनिवास श्रिया कान्तया त्राहि नः ।
त्वामृतेऽधीश नाङगैर्मखः शोभते शीर्षहीनः कबन्धो यथा पूरुषः ॥ १२. मन्दाक्रान्ता
जिसके प्रत्येक चरण में मगण, भगण, नगण, तगण, नगण तथा दो गुरु वर्ण हों उसे मन्दाक्रान्ता छन्द कहते हैं । दक्ष ऋत्विज भगवान् विष्णु की स्तुति मन्दाक्रान्ता में करते हैं --
उत्पत्त्यध्वन्यशरण उरुक्लेशदुर्गेऽन्तकोन व्यालान्विष्टे विषयमृगतृष्यात्मगेहोरुमारः। द्वंद्वश्वभ्र खलमृगभये शोकदावेज्ञसार्थः
पादौकस्ते शरणद कदा याति कामोपसृष्टः ॥' १. श्रीमद्भागवत १.८.३७ २. तत्रैव १.१०.२१ ३. तत्रव ३.५.३८ ४. छन्दोमंजरी, पृ० ४९ ५. श्रीमद्भागवत ४.७.३६ ६. छन्दोमंजरी, पृ० ८८ ७. श्रीमद्भागवत ४.७.२८
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