Book Title: Shrimad Bhagawat ki Stutiyo ka Adhyayana
Author(s): Harishankar Pandey
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 275
________________ श्रीमद्भागवत की स्तुतियों में गीतितत्त्व, छन्द और भाषा इति मतिरुपकल्पिता वितृष्णा भगवति सात्वतपुङ्गवे विभूनि । स्वसुखमुपगते क्वचिद्विहतुं प्रकृतिमुपेयुषि यद्भवप्रवाहः ॥ उपर्युक्त श्लोक के प्रथम एवं तृतीय चरण में नगण, नगण, रगण, यगण के क्रम से १२ अक्षर एवं द्वितीय तथा चतुर्थ चरण में नगण, जगण, जगण, रगण और एक गुरु क्रम से तेरह अक्षर होने से पुष्पिताग्रा है । (३) वंशस्थ श्रीमद्भागवत के स्तुतियों में अनेक स्थलों पर वंशस्थ छन्द का प्रयोग किया गया है । शुकदेव कृत स्तुति, गजेन्द्र स्तुति में कुछ श्लोक और वसुदेव कृत स्तुति में वंशस्थ छन्द का प्रयोग हुआ है । इसके अतिरिक्त अनेक स्थलों पर इसका प्रयोग प्राप्त है । जिसके प्रत्येक चरण में जगण, तगण, जगण और रगण क्रम से १२ अक्षर होते हैं । नमो नमस्तेऽस्त्वृषभाय सात्वतां fararष्ठाय मुहुः कुयोगिनाम् । निरस्त साम्यातिशयेन राधसा स्वधामनि ब्रह्मणि रंस्यते नमः ॥ गजेन्द्र मोक्ष के तीन श्लोक ( २३ - २५ ) वंशस्थ छन्द में हैं । हुआ है । २४९ (४) इन्द्रवज्रा चार चरणों से युक्त, प्रत्येक चरण में दो तगण, एक जगण और अन्त में दो गुरु क्रम से युक्त एकादश वर्णों वाला समवृत्त छन्द है । श्रीमद्भागवत में अनेक स्थलों पर इन्द्रवज्रा छंद का प्रयोग पाया जाता है । सत्यव्रतं सत्यपरं त्रिसत्यं सत्यस्य योनि निहितं च सत्ये सत्यस्य सत्यमृतसत्यनेत्रं सत्यात्मकं त्वां शरणं प्रपन्नाः ॥ प्रथम स्कंध में सूतोपदिष्ट शुकदेव की स्तुति में इस छंद का प्रयोग यं प्रव्रजन्तमनुपेतमपेतकृत्यं द्वैपायनो विरहकातर आजुहाव । पुत्रेति तन्मयतया तरवोऽभिने दुस्तं सर्वभूतहृदयं मुनिमानतोऽस्मि ॥ १. श्रीमद्भागवत १.९.३२ २. वदन्ति वंशस्थविलं जती जरी - छन्दोमञ्जरी पृ० ४६ ३. श्रीमद्भागवत २.४.१४ ४. स्यादिन्द्रवज्रा यदि तौ जगौ गः- - छन्दोमञ्जरी पृ० १३ ५. श्रीमद्भागवत १०.२.२६ ६. तत्रैव १.२.२ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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