Book Title: Shrimad Bhagawat ki Stutiyo ka Adhyayana
Author(s): Harishankar Pandey
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 250
________________ २२४ श्रीमद्भागवत की स्तुतियों का समीक्षात्मक अध्ययन ___ वृत्रासुर स्तुति कर रहा है । शंखचक्रगदाधारी भगवान् विष्णु सामने खड़े हैं । दुष्ट इन्द्र अन्धाधुन्ध अस्त्र-शस्त्रों का प्रहार कर रहा है। उसी समय शस्त्र फेंककर वृत्रासुर प्रभु को अपना सर्वस्व समर्पित कर देता है। उपमा सौन्दर्य मण्डित चाक्षुष बिम्ब के अनेक उदाहरण इस स्तुति में उपलब्ध हैं। इस प्रकार प्रत्येक स्तुति में चाक्षष बिम्ब की प्राप्ति होती है । ध्वनि बिम्ब विश्व में कुछ ऐसे पदार्थ होते हैं जो विशिष्ट गति से सक्रिय होने पर विशेष प्रकार के शब्द उत्पन्न करते हैं, उन शब्दों का ग्रहण श्रवणेन्द्रिय के द्वारा होता है । शब्दों में इतनी शक्ति होती है कि वे प्राणी के कर्णकुहरों में प्रवेश करके उसके राग-तन्तुओं को झंकृत कर देते हैं। पदार्थों में वैभिन्नय होने के कारण शब्दों में भी वैभिन्नय होता है। वे कोमलता-मधुरता, कठोरता-कर्कशता आदि गुणों से युक्त होते हैं। ध्वनिबिम्ब या शब्द बिम्ब के सम्बन्ध में तीन बातें ध्यातव्य है.--- (१) शब्द बिम्ब सामान्य शब्द की तरह केवल पदार्थ का द्योतक न होकर उससे उत्पन्न ध्वनि का द्योतक होता है। ध्वनि-व्यंजक शब्द का उच्चरित रूप मूल पदार्थ की ध्वनि की समानता लिए रहता है। उस शब्द के ग्रहण करते ही प्रमाता की चेतना में तत्सम्बन्धी पदार्थ-ध्वनि का पुनः ध्वनन होने लगता है। (२) कुछ पदार्थ अपनी विशिष्ट ध्वनि के लिए विख्यात है। उनका नाम आते ही उनसे उत्पन्न होने वाली ध्वनि का बिम्ब मानस में आ जाता (३) कभी-कभी मानवीय ध्वनि के गुण का आरोप प्राकृतिक पदार्थ ध्वनि पर तो कभी प्राकृतिक पदार्थ-ध्वनि का आरोप मानवीय ध्वनि पर कर दिया जाता है । इस पद्धति से उस ध्वनि का जो बिम्ब अवतरित होता है उसमें विशेष क्षमता आ जाती है । इसमें व्यंजना-शक्ति खास तौर से काम करती है। श्रीमद्भागवत की स्तुतियों में यह शब्द-बिम्ब प्रत्येक स्थलों पर पाया जाता है । विपत्तियों से त्रस्त भक्तों की एवं संसार से तिरस्कृत जनों की करुण पुकार श्रवणेन्द्रिय मार्ग से ग्राह्य होकर हृदय को झंकृत कर देती है। भक्तों के भक्तिभावित हृदय से निःसृत शब्द समुदाय जब श्रोता या पाठक के कर्णकुहरों में प्रवेश करते हैं, तब एक अपूर्व आनन्द की सृष्टि होती है। चाहे वह करुण पुकार हो या दुःख दैन्य की कहानी, सबके सब चित्त को विकसित १. श्रीमद्भागवत ६.११. २५-२७ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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