Book Title: Shrimad Bhagawat ki Stutiyo ka Adhyayana
Author(s): Harishankar Pandey
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 248
________________ २२२ श्रीमद्भागवत की स्तुतियों का समीक्षात्मक अध्ययन एक संश्लिष्ट चाक्षुष-बिम्ब का उदाहरण, जिसमें श्रीकृष्ण के मनोरम सौन्दर्य का निरूपण हुआ है : विषान्महाग्नेः पुरुषाददर्शनादसत्सभाया वनवासकृपछतः । मृधे मृधेऽनेकमहारथास्रतो द्रौण्यत्रतश्चास्म हरेऽभिरक्षिताः ।।' इस श्लोक में अनेक प्रकार के बिम्ब उजागर होते हैं - - विष एवं अग्नि और हिडिम्ब आदि राक्षस, तसभा का कोलाहल, वनवास में आयी विपत्तियां । दुर्वासा की क्रोधमूर्ति और दुर्दम्य अश्वत्थामा के ब्रह्मास्त्र के लपट इत्यादि दृश्य बिम्बित होते हैं । इसमें रूप बिम्ब, श्रवण बिम्ब तथा भावबिम्ब का समन्वय है। बिम्ब उपमा का प्राण है। कोई भी उपमा बिना किसी बिम्ब की नहीं हो सकती है त्वयि मेऽनन्यविषया मतिर्मधुपतेऽसकृत् । रतिमुद्वहतादद्धा गङ गेवौघमुदन्वति ॥' इसमें रूप बिम्ब के साथ-साथ भाव बिम्ब, ध्वनि बिम्ब एवं स्पर्शबिम्ब भी है। गंगा की उज्ज्वल धारा सर्व प्रथम आंखों के सामने रूपायित होती है, तदनन्तर उसमें विद्यमान शैत्यता का अनुभव स्पर्श के द्वारा होता है। ज्योहिं गंगा का रूप बिम्बित होता है त्योंहि उसके प्रति हृदय में श्रद्धा का संचार हो जाता है। उसकी अखण्ड धारा से उत्पन्न श्रुतिमधुर कल-कल ध्वनि श्रवणेन्द्रिय को आनन्द प्रदान करती है। यह गत्यात्मक बिम्ब का उदाहरण है। भगवान् नृसिंह की भयंकरता से सभी देव डर गये। तब बालक प्रह्लाद उनके चरणों में लोटकर स्तुति करने लगता है। एक तरफ भगवान् के भयंकर रूप का दर्शन होने से हृदय में भय व्याप्त हो जाता है, तो दूसरी ओर बालक प्रह्लाद के अवलोकन से हृदय में बात्सल्य उमड़ पड़ता है। उपर्युक्त प्रसंग में रूप बिम्ब के अतिरिक्त भय के कारण एवं बालक के प्रति वात्सल्य भाव के कारण भाव बिम्ब का भी सौन्दर्य चळ है। ब्रह्मास्त्र से डरकर उतरा भाग रही है । आगे-आगे उत्तरा और पीछे से ब्रह्मास्त्र-जलता अंगारा । सब सम्बन्धियों को असार समझकर सबके परम सम्बन्धी भगवान को पुकार उठती है। यहां रूप बिम्ब के साथ-साथ भाव बिम्ब भी है । पर्वत, नदी एवं सागर के बिम्ब का उदाहरण १. श्रीमद्भागवत १.८.२४ २. तत्रैव १.८.४२ ३. तवैव १.८.९-१० Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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