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श्रीमद्भागवत की स्तुतियों में अलंकार
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उधर ही आ रहे हैं, जिधर भक्तराज गजेन्द्र जीवन और मरण के साथ संघर्ष कर रहा है- प्रभु प्रत्यक्ष दर्शन प्राप्त कर वह धन्य हो जाता है । जन्म जन्मान्तरीय साधना सफल हो जाती है। नीचे वह गजेन्द्र मृत्यु के मुख में, ऊपर उसके स्वामी, जिसके लिए वह कितने जन्मों से इन्तजार कर रहा था, कितने कष्ट पूर्ण साधनाओं को उसने पूर्ण किया था, तब भी उसे प्रभु नहीं मिले । आज जब वह पूर्णतः असहाय हो चुका है, तब उसके प्रियतम आ रहे हैक्या समर्पित करे-- उस त्रिलोकी पति को कुछ है ही नहीं। कुछ कर भी नहीं सकता, क्योंकि वह पूर्णत: फंस चुका है। बिना दिए रह भी नहीं सकता, क्योंकि आज उसके प्रियतम का प्रत्यक्ष दर्शन प्राप्त हो रहा है वह किसी तरह कमलनाल तोड़कर हाथ में उठाकर उस आगम्यमान प्रभु को समर्पित कर देता है . “नारायणाखिल गुरो भगवन्नमस्ते'' इसी के साथ वह अपना सर्वस्व उसी के चरणों में समर्पित कर देता है । सोऽन्तः सरस्युरुबलेन गृहीत आतों दृष्ट्वा गरुत्मति हरि ख उपात्तचक्रम् । उत्क्षिप्य साम्बुजकरं गिरमाह कृषछान्नारायणाखिलगुरो भगवन् नमस्ते ॥'
कमलों से पूर्ण अगाध सरोवर, विशालकाय हाथी और भयंकर ग्राह, आगम्य-मान प्रभु, गरुड, सुदर्शन और गजेन्द्र द्वारा हाथ उठाकर कमल पुष्प का समर्पण आदि दृश्य हमारे नेत्रेन्द्रिय के सामने प्रत्यक्ष हो जाते हैं। यह स्थिर एवं गत्यात्मक एकल चाक्षुष बिम्बों का मिश्रित उदाहरण है ।
महाहवैदूर्यकिरीटकुण्डलत्विषा परिष्वक्तसहस्रकुन्तलम् । उद्दामकाञ्च्यङ गदकङ कणादिभिर्विरोचमानं वसुदेव ऐक्षत ॥
उपर्युक्त श्लोक में भगवान श्रीकृष्ण का अद्भुत सौन्दर्य का वर्णन किया गया है । भगवान् श्रीकृष्ण कंश-कारागार में अत्यन्त सुन्दर लगते हैं। कमल के समान कोमल एवं विशाल नेत्र, चार सुन्दर हाथों से युक्त, जिनमें शंख, चक्र, गदा और कमल लिए हुए हैं । वक्षस्थल पर श्रीवत्स का चिह्न, गले में कौस्तुभमणि, वर्षाकालिन मेघ के समान परम सुन्दर श्यामल शरीर, मनोहर पीताम्बर से सुशोभित, वैदूर्यमणि के किरीट और कुण्डल की कान्ति से सुन्दर, धुंघराले बाल सूर्य की किरणों के समान चमक रहे हैं। कंगणों से हाथ सुशोभित हो रहे हैं। यहां बालक श्रीकृष्ण के साथ विभिन्न प्रकार के आभूषणों का रूप भी बिम्बित हो रहा है।
कुन्ती स्तुति करती है । कृष्ण के उपकारों को बार-बार याद करती
१. श्रीमद्भागवत ८.३.३२ २. तत्रैव १०.३.१०
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