Book Title: Shrimad Bhagawat ki Stutiyo ka Adhyayana
Author(s): Harishankar Pandey
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 245
________________ श्रीमद्भागवत की स्तुतियों में अलंकार २१९ बिम्ब निर्माण में कल्पना के साथ-साथ प्रत्यक्ष अनुभवों की प्रधानता होती है । कभी-कभी प्रत्यक्ष अनुभव न प्राप्त होने पर भी कल्पना के द्वारा संवेदना के स्तर पर उन्हें साक्षात्कार कर लिया जाता है । वही बिम्बयोजना सफल मानी जाती है जो अपने मूल के समस्त विशेषताओं को सहृदय के मानस में प्रतिफलित कर दे। इस प्रक्रिया में रागात्मकता का संश्लेष आवश्यक है । राग ही वह तत्त्व है जो प्रतिपाद्य विषय और उसे रमणीय बनाने वाले बिम्ब को अन्वित किए रहता है। बिम्ब का कार्य भावानुभूतियों तथा विचारों की व्यंजना है। बिम्ब मूलतः इन्द्रियों का विषय है। मन इन्द्रियों के माध्यम से विषयों का भावना करता है, संस्कारमय अन्तश्चेतना के सम्पर्क से उन्हें रागरंजित करता है । इस प्रकार इन्द्रियों के मूलधर्म के आधार पर बिम्ब पांच प्रकार के हो जाते हैं -रूप, शब्द, गंध, रस और स्पर्श । काव्य बिम्बों का वर्गीकरण काव्य बिम्बों के वर्गीकरण में विद्वानों में ऐक्यमत नहीं है । आधुनिक काव्य विद्या के जितने विचारक हुए हैं वे सबके सब अपने अनुसार काव्यबिम्बों का विभाजन करते हैं। कुछ काव्य बिम्ब इन्द्रिय ग्राह्य होते हैं जैसे कमल का सौन्दर्य आदि, कुछ हृदय ग्राह्य होते हैं यथा दुःख, सुख इत्यादि और कुछ मानस के अर्थात् प्रज्ञा ग्राह्य होते हैं जैसे मान, अपमान, यश, पुण्यपाप, आदि । इस प्रकार प्रथमत: इन्द्रियों के आधार पर काव्य बिम्बों को दो भागों में वर्गीकृत किया गया-... १. बाह्य न्द्रिय ग्राह्य और २. अन्तःकरणेन्द्रिय ग्राह्य । (१) बाह्य करणेन्द्रिय बिम्ब पांच प्रकार के होते हैं१. रूप बिम्ब ४. गन्धबिम्ब और २. ध्वनि बिम्ब ५. आस्वाद बिम्ब । ३. स्पर्शबिम्ब (२) अन्त: करणेन्द्रिय ग्राह्य बिम्ब दो प्रकार के होते हैं१. भाव बिम्ब २. प्रज्ञा बिम्ब उपर्युक्त बिम्बों के भी कई उपभेद होते हैं-स्थिरता और गत्यात्मकता के आधार पर बिम्बों के दो भेद १. स्थिर एवं २. गतिशील पुनः श्लोकों के आधार पर उपर्युक्त बिम्बों के दो भेद१. एकल और २. संश्लिष्ट Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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