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दार्शनिक एवं धार्मिक दृष्टियां शक्ति से ब्रह्मा विष्णु और महेश रूप में प्रकट होते हैं तथा सृष्टि का सृजन, पालन और संहार करते हैं ।
आप ज्ञान स्वरूप हैं । आपही से वेद प्रकट हुए, इसलिए आप समस्त ज्ञान के मूल स्रोत स्वतःसिद्ध ज्ञान हैं। आप सांख्यादि समस्त शास्त्रों में स्थित हैं और उनके कर्ता भी हैं ।
आप परम ज्योतिर्मय स्वरूप परम ब्रह्म हैं । रजोगुणादि के भेद भाव से रहित और इन्द्रादि देवों के लिए भी अविज्ञात हैं।
___ इस प्रकार भगवान् शिव सर्वसमर्थ सर्वव्यापक, सर्वोच्च ईश्वर, निर्विकार, चैतन्य, शरणागतवत्सल, दुष्टों का संहारक, दलितों का उद्धारक, मार्कण्डेय प्रभृति भक्तों के जीवनदाता आदि रूप में भागवतीय स्तुतियों में आए हैं। राम
"रमन्ते योगिनो ध्यानेन क्रीडन्त्यत्रेति राम"" अर्थात जिसमें योगिराज रमण करते हैं वे राम हैं। रमु क्रीडायाम् और रा दीप्त्यादानयोः धातुओं से राम शब्द की निष्पत्ति होती है जिसका अर्थ रमण करने वाला, सर्वव्यापक, सर्वप्रकाश तथा ईश्वर है। राम पद परब्रह्म का द्योतक है ।
_इनका स्वरूप वाल्मीकि रामायण और विविध पुराणों में विस्तृत रूप से विवेचित है। श्रीमद्भागवतपुराण में इनका अतिसंक्षिप्त चरित्र है। सिर्फ एक ही स्थल पर भक्तराज हनुमान द्वारा इनकी स्तुति की गई है।
आप सत्पुरुषों के लक्षण , शील और चरित से युक्त हैं। लोकाराधक और ब्राह्मण भक्त हैं। आप विशुद्ध स्वरूप, अद्वितीय, अनन्त, ज्ञानस्वरूप, नाम रूप से रहित और अहंकारशून्य हैं । आप धर्म प्रतिष्ठापक और लोकशिक्षक हैं।
__ आप सर्वाङ्गसुन्दर एवं मनोज्ञ हैं। लोकरक्षा के लिए ही आप मावतार ग्रहण करते हैं । १. श्रीमद्भागवत ८.७.२५ २. तत्रैव ८.७.३० ३. तत्रैव ८.७.३१ ४. तत्रैव वंशीधरी टीका, पृ० ८ ५. तत्रैव ८ ६. श्रीमद्भागवत ५.१९.४ ७. तत्रैव ५.१९.७
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