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श्रीमद्भागवत की स्तुतियों का समीक्षात्मक अध्ययन प्रभु के गुणों के आधार पर
नमः पङ्कजनाभाय नमः पङ्कजमालिने ।
नमः पङ्कजनेत्राय नमस्ते पङ्कजाङ घ्रये ॥ उपर्युक्त प्रथम श्लोक में कुन्ती अपने निजी सम्बन्धों के आधार पर भगवान् कृष्ण को विविधाभिधानों----कृष्ण, वासुदेव, देवकीनन्दन, नन्दगोपकुमार, गोविन्द आदि तथा द्वितीय श्लोक में भगवान् कृष्ण के रूप सौन्दर्य के आधार पर पङ्कजनाभ, पङ्कजमालिन, पङ्कजनेत्र आदि नामों से उन्हें विभूषित करती है।
देव नामावलियों का मूल उत्स वेद है। विविध अवसरों पर साक्षात्कर्मा ऋषि अपने प्रभु को विविध नामों से पुकारते हैं। वेद की स्पष्टोक्ति है कि "अनिष्ट को दबाने के लिए उस शतक्रतु, अनन्तपराक्रम, यज्ञस्वरूप, परम पावन प्रभु के नामों का जप करना चाहिए।"
वैदिक ऋषियों ने इन्द्र वरुण, मित्र, अग्नि, यम आदि नामों से प्रभु को विभूषित किया है। अग्नि के लिए लगभग ४०० विभिन्न नाम आये हैं। ऋग्वेद का प्रारम्भ ही अग्नि के विशेष नामाभिधानों से होता
अग्निमीडे पुरोहितं यज्ञस्य देवं ऋत्विजं होतारं रत्नधातमम् ।'
विविध धर्माचार्यों ने अपने-अपने उपास्य के लिए विविध नामों का प्रयोग किया है ---दुर्गा, काली, शंकर, कृष्ण, जिन, अर्हत्, तथागत, खुदा, अल्ला, हजरत, गौड, लोर्ड आदि अनेक नामों द्वारा अपने उपास्य का स्मरण किया जाता है।
श्रीमद्भागवत के प्रत्येक स्तुति में प्रभु के विभिन्न नामों का प्रयोग पाया जाता है । कृष्ण, विष्णु, राम, नृसिंह, वाराह आदि परमात्मा विषयक एवं तदावतारों से सम्बन्धित नामों का प्रयोग प्राप्त होता है। विभिन्न देव सम्बन्धी अभिधानों का उपयोग उनके भक्तों द्वारा विभिन्न अवसरों पर किया गया है।
नाम-अभिधान-संज्ञा आदि शब्द समानार्थक हैं।
विभिन्न अभिधानों में निहित अर्थों के आधार पर उनका वर्गीकरण किया जा रहा है, जो निम्नलिखित हैं---
(१) निर्गुण स्वरूप के प्रतिपादक (२) कृष्ण के मानवीय रूप (लीला) से सम्बन्धित
(३) सर्वव्यापकत्व के प्रतिपादक १. श्रीमद्भागवत १.८.२२
२. ऋग्वेद ३.३७.३ Jain Education International
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