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श्रीमद्भागवत की स्तुतियों का समीक्षात्मक अध्ययन हैं । यहां कैसे जान सकती हैं, इसके द्वारा 'हम नहीं जाने सकते' इस अन्य अर्थ के प्रतिपादन से अर्थापत्ति अलंकार है। स्मरणालंकार
मम्मट और रुय्यक के पहले स्मरण या स्मृति की स्वीकृति नहीं मिल पाई थी। स्मृति के स्वरूप तथा कारण पर दर्शन में पहले से विचार हो रहा था। दार्शनिकों ने ज्ञान के स्वरूप का निरूपण करते हुए स्मृतिजन्य ज्ञान प्रत्यभिज्ञा आदि का विशद विवेचन किया था। रुय्यक मम्मट आदि के अनुसार केवल सादृश्यजन्य स्मृति ही स्मरणालंकार है ।। गोप्याददे त्वयि कृतागसि दाम तावद् या ते दशाश्रुकलिलाञ्जनसंभ्रमाक्षम् । वक्त्रं निनीय भयभावनया स्थितस्य सा मां विमोहयति भीरपि यबिभेति ॥'
जब बचपन में आपने दूध की मटकी फोड़कर यशोदा मैया को खिझा दिया था और उन्होंने बांधने के लिए हाथ में रस्सी ली थी तब आपकी आंखों में आंसू छलक आये थे, काजल कपोलों पर बह चला था, नेत्र चंचल हो रहे थे और भय की भावना से अपने मुख को नीचे की ओर झुका लिया था। आपकी उस दशा का लीलाछवि की ध्यान करके मोहित हो जाती हैं । भला जिससे भय भी भय मानता है उसकी यह दशा !
यहां कुन्ती भगवान् श्रीकृष्ण को अपने सम्बन्धी और रक्षक के रूप में देखकर उनके बाल्य लीलाओं का स्मरण करती है ।
भक्तराज भीष्म को महाप्रास्थानिक बेला में उपस्थित श्रीकृष्ण को देखकर महाभारत युद्ध के अन्तर्गत विद्यमान श्रीकृष्ण के अद्भुत सौन्दयं की स्मृति आने लगती है
युधि तुरगरजोविधम्रविष्वक्कचलुलितश्रमवार्यलंकृतास्ये । मम निशितशरविभिद्यमानत्वचि विलसत्कवचेऽस्तु कृष्ण आत्मा ॥
जाम्बवान श्रीकृष्ण की स्तुति करते हुए कहते हैंयस्येषदुत्कलितरोष कटाक्षमोक्षः वादिशत् क्षुभितनक्रतिमिङ्गिलोऽब्धिः सेतुः कृतः स्वयश उज्ज्वलिता च लङ्का रक्षःशिरांसि भुवि पेतुरिषुक्षतानि ॥
प्रभो मुझे स्मरण है । आपने अपने नेत्रों में तनिक-सा क्रोध भाव लेकर तिरछी दृष्टि से समुद्र की ओर देखा था। उस समय समुद्र के अन्दर रहने वाले बड़े-बड़े नाक (घड़ियाल) और मगरमच्छ क्षुब्ध हो गये थे, और समुद्र ने आपको मार्ग दे दिया था। तब आपने उस पर सेतु बांधकर सुन्दर यश १. मम्मट, काव्यप्रकाश १०.१९९ २. श्रीमद्भागवत १.८.३१ ३. तत्रैव १.९.३४ ४. तत्रैव १०.५६.२८
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