________________
भागवत की स्तुतियां : स्रोत, वर्गीकरण एवं वस्तु विश्लेषण १०७ गजेन्द्र मोक्ष का सस्वर पाठ करो। यह भक्ति का सर्वश्रेष्ठ महाकाव्य है। सचमुच यह स्तोत्र भक्ति शास्त्र के सारे तत्त्वों को अपने में समाहित किए हुए
इस स्तोत्र से प्रसन्न होकर निविशेष प्रभु आकाश मार्ग से आ रहे हैं ...-अपने अनन्य भक्त गजेन्द्र के उद्धारार्थ । आज गज की जन्म जन्मांतरीय साधना सफल हो रही है । सब कुछ समर्पित कर चुका है-अपने उपास्य के चरणों में-कुछ है ही नहीं- उस आगत के आतिथ्य के लिए। कुछ कर भी नहीं सकता क्योंकि ग्राह से जुझ रहा है। बेचारा किसी तरह एक कमल पुष्प खींचकर अपने प्रभु को समर्पित कर देता है --- सोऽन्तःसरस्युरुबलेन गृहीत आर्ती
दृष्ट्वा गरुत्मति हरि ख उपात्तचक्रम । उत्क्षिप्यसाम्बुजकरं गिरमाह कृच्छात् ।
नारायणाखिल गुरो भगवन् नमस्ते ।' ___ यह स्तुति ज्ञान एवं भक्ति दोनों की दृष्टि से महनीय है। प्रभ को संपूर्ण जगत् का आश्रय के रूप में बताया गया है
नमो नमस्तेऽखिलकारणाय निष्कारणायाद्भुतकारणाय ।
सर्वागमाम्नायमहार्णवाय नमोऽपवर्गाय परायणाय ॥
पितामह ब्रह्मा इस स्कन्ध में तीन बार भगवत्स्तुति करते हैं। प्रथम बार पांचवे अध्याय में जब समुद्र मंथन से उत्पन्न अमृतपान के लिए देवासुर संग्राम हुआ, उसमें सभी देव श्रीहीन हो गये। देवों के कल्याणार्थ पितामह ब्रह्मा उन लोगों के साथ सच्चिदानन्द परम प्रभु के धाम पधारते है और अपनी वेद वाणी से स्तुति करते हैं । यद्यपि अनन्त का प्रत्यक्ष दर्शन नहीं हो पाता फिर भी ब्रह्मा जी ध्यानस्थ हो एकाग्र मन से इस प्रकार स्तुति करने लगे----भगवान आप निर्विकार सत्य, अनन्त , आदि पुरुष, सर्वव्यापी, अखण्ड एवं अतयं हैं । प्रभो ! हम शरणागत हैं कृपा करके आप अपना दर्शन कराइए
स त्वं नो दर्शयात्मानमस्मत्करणगोचरम् ।
प्रपन्नानां दिदृक्षूणां सस्मितं ते मुखाम्बुजम् ॥
ब्रह्मा की स्तुति से प्रसन्न गदाधर देवों के बीच में प्रत्यक्ष प्रकट हो गये। उस समय भगवान् के निज अस्त्र सुदर्शन चक्र मूर्तिमान् होकर सेवा कर
१. श्रीमद्भागवत ८।३।३२ २. तत्र व ८।३।१५ ३. तत्र व ८।५।२६-५० ४. तत्र व ८.५१४५
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org