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दार्शनिक एवं धार्मिक दृष्टियां और आनन्द' कहा गया है उसी (कृष्ण) को ही कैवल्य, अपवर्ग, परमपद, परमतत्त्व, आत्मतत्त्व, अमृत, अभय, परम,, निर्वाण, शांति गति, संसिद्धि आदि पदों से समानाधिकरय में अभिहित किया गया है। परम तत्त्व को केवलानुभवानन्दस्वरूपः केवलानन्दानुमः,१५ निर्वाणसुखानुभूतिः कैवल्यनिर्वाण सुखानुभूतिः केवलानुभवानन्द संदोहो निरूपाधिक: और परमकेवलचित्यामा," कहा गया है। इसी प्रकार परमेश्वर को अनेकश: "केवलः, अद्वयम्", "एकअद्वितीयः" "एक एवाद्वितीयो सो” “एक एवाद्वितीयोऽभूत्' 'एकमभयम्", ब्रह्मणि अद्वितीय केवले परमात्मनि" भी कहा गया है । स्पष्ट है कि परमेश्वर आत्मावबोधानन्दाद्वयस्वरूप है । अवतार के कारण
__ परमेश्वर ज्ञानस्वरूप परमविशुद्ध सर्वतंत्रस्वतंत्र, अद्वयानन्द, निरपेक्ष, निविकार, साक्षी, सर्वव्यापक, सर्वनियामक हैं। समय-समय पर लोकसंग्रहार्थ, लीलार्थ भक्तों की रक्षा के लिए, असुरों का विनाश कर पृथिवी को भार से मुक्त करने के लिए नाम, गुण, उपाधिरहित आप अपनी माया से नाम, गुण, उपाधि वाले हो जाते हैं
१. श्रीमदभागवत १०.३.३४,१०.८५.१०, १०.१४.२३, १०.५८.३८ २. तत्रैव १०.९.१८ ३. तत्रैव ८.३.१५ ४. तत्र व ११.२९.२२ ५. तव १०.४३.१७ ६. तत्रैव १२.१२.३६ ७. तत्रैव ११.२९.२२ ८. तत्रैव २.१.३ ९. तत्रैव ४.९.१६ १०. तत्रैव ४.११.१४ ११. तत्रव ४.२०.१० १२. तत्रैव ११.१६.१० १३. तत्रैव ११.१९.१ १४. तत्रैव ७.६.३ १५. तत्रैव ५.४.१४ १६. तत्रैव ६.४.२८ १७. तत्रैव ७.१०.४९ १८. तत्रैव ११.८.१८ १९. तत्रैव ३०.१४.२६
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