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दार्शनिक एवं धार्मिक दृष्टियां
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जैसे नारायण देवों की रक्षा करते हैं वैसे ही आप समस्त व्रजमण्डल ( जीवसमूह) की रक्षा करते हैं । '
५. कारणों के परम कारण
आप प्रकृति आदि समस्त कारणों के परम कारण हैं । आप ही अविनाशी नारायण हैं । सम्पूर्ण चराचर सृष्टि के कर्त्ता ब्रह्माजी आपही के नाभि कमल से उत्पन्न हुए हैं।' आप सब कुछ हैं, सबके कारण हैं तथा सबकी आत्मा हैं । आप स्वयं जन्मरहित होते हुए भी सबके आश्रय हैं । जगत् में जो भी कारण कार्य स्वरूप है वह सब आपका ही स्वभाव है । समस्त प्राणियों और पदार्थों की उत्पत्ति, स्थिति, रक्षा और प्रलय के कारण भी आप ही हैं ।
आप समस्त विकारों से रहित हैं फिर भी जगत् की सृष्टि स्थिति और प्रलय आपसे ही होते हैं।' आप तीनों गुणों के आश्रय हैं इसलिए उन गुणों का कार्य आदि का भी आपही में आरोप किया जाता है। आप संपूर्ण जगत् के लयस्थान हैं । '
६. सर्वव्यापक एवं सर्वेश्वर
आप सर्वव्यापक तथा सर्वपूज्य हैं । साधुयोगी स्वयं में स्थित अंतर्यामी रूप, समस्तभूत- भौतिक पदार्थों में व्याप्त परमात्मा के रूप में इष्टदेवता, साक्षी पुरुष, ईश्वर के रूप में साक्षात् आपही की उपासना करते हैं । आप केवल यशोदा मइया के लाड़ला ही नहीं, समस्त शरीर धारियों के हृदय में रहने वाले साक्षी एवं अंतर्यामी हैं ।" आप ही समस्त प्राणियों के शरीर, प्राण, अन्तःकरण और इन्द्रियों के स्वामी हैं तथा आपही सर्वशक्तिमान् काल, सर्वव्यापक एवं अविनाशी ईश्वर हैं । " जैसे एक ही अग्नि सभी लकड़ियों में व्याप्त रहती है वैसे आप समस्त प्राणियों के एक
१. श्रीमद्भागवत १०।२९।४०
२. तत्रैव १०/४०।१
३. तत्रैव १०।२७।११,१०५९।२७
४. तत्रैव १०।५९।२८
५. तत्रैव ११।१६ १
६. तत्रैव १०।३।१९, १० ८५। ५, १०३७।१३, १०१६९/४५, १०।५९।२९
७. तत्रैव १०।३।१९
८. तत्रैव १०।४०।१०, १०।३।३१
९. तत्रैव १०.४०.४
१०. तत्रैव, १०.३१.४
११. तत्रैव, १०.१०.३०
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