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श्रीमद्भागवत की स्तुतियों का समीक्षात्मक अध्ययन
भक्त भगवान् कृष्ण की स्तुति करते हैं। एकादश स्कन्ध में कामदेव नरनारायण की स्तुति करता है। ऋषि मार्कण्डेय (१२।१०) भगवान् शंकर की स्तुति करते हैं
___ अहो ईश्वरलीलेयं दुविभाव्या शरीरिणाम् ।
यन्नमन्तीशितव्यानि स्तुवन्ति जगदीश्वराः ॥' (क) सुखावसान होने पर
सुख के अन्त होने पर श्रीमद्भागवत में विभिन्न देवों की स्तुतियां की गई हैं। अपने ऊपर आये विपत्तियों का सामना करने के लिए भक्त भगवान् की स्तुति करता है । इस प्रकार अनेकशः स्तुतियां श्रीमद्भागवत में विद्यमान हैं। अर्जुन (१७), उत्तरा (१८), जीव (३१३१), देवगण (३३१५, ६।९), गजेन्द्र (८।३), प्रजापतिगण (८७), गोपियां (१०।२९), नागपत्नियां (१०।१६) राजागण (१०७०), आदि भक्त सुखावसान होने पर यानि संकट काल उपस्थित होने पर अपनी रक्षा के लिए अपने प्रियतम प्रभु के चरणों में शरण ग्रहण करते हैं। (ग) प्राण प्रयाणावसर पर
महाप्रास्थानिक वेला में पितामह भीष्म (१।९) श्रीकृष्ण की और भक्तराजवृत्रासुर (६।११), भगवान् विष्णु की स्तुति करते हैं। महाभारत के कराल समर में पितामह भीष्म अर्जुन के बाणों से विद्ध होकर धराशायी हो जाते हैं । जब उत्तरायण सूर्य का आगमन होता है, अन्तकाल में पितामह भीष्म अपने सामने समुपस्थित साक्षात् परमेश्वर कृष्ण की स्तुति करने लगते हैं । भीष्म की सारी वृत्तियां प्रभु के चरणों में समर्पित हो चुकी है
इति मतिरुपकल्पिता वितृष्णा भगवति सात्वतपुङ्गवे विभूम्नि । स्वसुखमुपगते क्वचिद्विहतुं प्रकृतिमुपेयुषि यद्भवप्रवाहः ।।
भीष्म त्रिभुवन कमन, तमाल वर्ण श्रीकृष्ण में अनवद्यारति की कामना करते हैं
त्रिभुवन कमनं तमालवर्ण रविकरगौरवाम्बरं दधाने ।
बपुरलककुलावृत ननाब्ज विजयसखे रतिरस्तु मेऽनवद्या ।'
अन्तकाल समुपस्थित जानकर राक्षसराज वृत्रासुर सब कुछ त्यागकर प्रभु के चरणों में अपने को समर्पित कर देता है । दासों के दास बनने की कामना करता है । वह प्रभु से निवेदित करता है१. श्रीमद्भागवत १२.१०.२८ २. तत्र व १।९।३२ ३. तत्र व ११९१३३ ४. तत्र व ६।११।२४
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