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भागवत की स्तुतियां : स्रोत, वर्गीकरण एवं वस्तु विश्लेषण
त्वमग्निर्भगवान् सूर्यस्त्वं सोमो ज्योतिषां पतिः ।
त्वमापस्त्वं क्षितिर्योम वायुमात्रैन्द्रियाणि च ॥' ३. कष्ट से मुक्ति के लिए
सांसारिक कष्टों से निवृत्ति के लिए श्रीमद्भागवत में कतिपय स्तुतियां समाहित हैं । जब तक जीव-विशेष की सांसारिक शक्ति काम आती है तब तक उसे प्रभु की याद नहीं आती। जब शक्ति पूर्णतः क्षीण हो जाती है, प्राणसंकट उपस्थित हो जाता है, तब भक्त अपने उपास्य को, प्रभु को पुकारता है । ग्राह से ग्रसित गजेन्द्र निविशेष प्रभु की उपासना करता है, अपनी रक्षा की याचना करता है उस आत्ममूल से---
यः स्वात्मनीदं निज माययापितं, क्वचिद्विभातं क्वचतत्तिरोहितम् । अविद्धदृक् साक्ष्युभयं तदीक्षते, स आत्ममूलोवतु मां परात्परः ॥
द्रोणि के ब्रह्मास्त्र से त्रस्त अर्जुन और उत्तरा प्रथम स्कंध में स्तुति करते हैं । सम्पूर्ण धरा को अश्वत्थामा ने “अपाण्डवमिदंकर्तुम्" की प्रतिज्ञा की है। वह पाण्डव के नवजात शिशुओं एवं स्त्रीगों को विनष्ट कर चुका था, सिर्फ एक ही उत्तरा का गर्भ बचा था, जिसमें महान भागवत भक्त परीक्षित् संवद्धित हो रहे थे, उसे भी नष्ट करने के लिए ब्रह्मास्त्र का संधान कर दिया। उत्तरा के शब्दों में -हे प्रभो ! मेरी रक्षा करो। प्राणसंकट उपस्थित होने पर संसार में ऐसा कौन प्राणी है, जो जीव मात्र को अभयदान दे सके ?
पाहि-पाहि महायोगिन देव-देव जगत्पते ।
नान्यं त्वदभयं पश्ये यत्र मृत्युः परस्परम् ॥ भौमासुर के बध के अनन्तर उसके पुत्र भयभीत भगदन्त की रक्षा के लिए पृथिवी श्रीकृष्ण की नुति करती है। हिरण्यकशिपु के भय से अपनी रक्षा के लिए प्रह्लाद जगन्नियन्ता विष्णु की स्तुति करता है । ४. सांसारिक अभ्युदय की कामना से
सांसारिक अभ्युदय, पुत्र-पौत्र, धन-सम्पत्ति, मान-मर्यादा, सैन्यशक्ति आदि की वृद्धि के लिए कतिपय भक्त अपने स्तव्य की उपासना करते हैं। वृत्रासुर के बध के लिए या राक्षसों पर विजय के लिए देवराज इन्द्र पुरोहित विश्वरूप से उपदिष्ट होकर "नारायणवर्म" का पाठ करते हैं । आज भी १. श्रीमद्भागवत ९।।३ २. तत्रैव ८.३.४ ३. तत्रैव १.८.९ ४. तत्रैव १०.५९.३ ५. तत्रव ६.८.४-४.
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