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| होनेपर भाद्रपद शुक्ला चतुर्थी सं० १९६६ को १४ वर्षकी अवस्थामें । में ही अपनी यह जीवन लीला समाप्त कर गई ! और उसके द्वारा
संसारकी असारताका सजीव पाठ पढ़ाते हुए यह बतला गई कि! जीवन क्षणभंगुर है, उसका कोई भरोसा नहीं, उसकी स्थिरताके भरोसे रहकर किसीको भी आत्म-विस्मरण न करना चाहिएसदा ही सत्साधुओंकी तरह आत्म-साधनामें तत्पर रहना चाहिए।
रोगादिकके आ धर दबानेपर इच्छा रहते भी फिर कुछ नहीं ! बनता और आयुका कब अन्त आजाए इसका किसीको पता नहीं। !
साथ ही, यह भी बतला गई कि बाल्य-विवाहसे किसीको भी सुख
नहीं मिलता। । यह सुशील बालिका धार्मिक रुचिको लिए हुए अच्छी तीक्ष्ण
बुद्धि थी और सबको प्रिय मालूम देनेवाली एक विकासोन्मुख * सुन्दर सुकुमार कली थी, जिसके अकालमें ही काल-कवलित , होजानेसे माता-पिता तथा अन्य कुटुम्बीजनोंको भारी आघात ! पहुँचा है। साथ ही समाजकी भी कुछ कम क्षति नहीं हुई है। स्वर्गीय आत्माको परलोकमें सुख-शान्तिकी प्राप्ति होवे।
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